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[जैन आगम : एक परिचय
है। इसमें एक अध्ययन, ७०० श्लोक प्रमाण मूल पाठ, ५७ गद्यसूत्र और ९७ पद्य गाथाएँ हैं । इसमें २४ तीर्थंकरों और भगवान महावीर के ११ गणधरों तथा जिन-प्रवचन को नमस्कार करने के बाद स्थविरावली (गुरु-शिष्य परम्परा) दी गयी है। इसमें ज्ञान पर विस्तृत चर्चा उपलब्ध होती है। इसमें मति, श्रुत आदि पाँच ज्ञान, उनके उत्तरभेद, स्वरूप, वर्गीकरण आदि पर बहुत ही सुन्दर व तार्किक दृष्टि से विस्तृत प्रकाश डाला गया है। हेतुवादिकी आदि तीन संज्ञाओं का भी वर्णन है। श्रुत-ज्ञान के अक्षर-अनक्षर आदि भेद भी बताये गये है।
महत्व- नन्दीसूत्र में भावमंगलमय ५ ज्ञानों का वर्णन होने से आगम साहित्य में इसका विशेष महत्व रहा है । ज्ञान की जितनी विस्तृत चर्चा यहाँ मिलती है, उतनी अन्य आगमों में नहीं। .
(४) अनुयोगद्वार- अनुयोगद्वार को भी आगम चूलिकासूत्र के नाम से पहचाना जाता है। इसे समस्त आगमों और उनकी व्याख्याओं को समझने के लिए कुंजी ही समझना चाहिए। ____ अनुयोग का अर्थ व्याख्या अथवा विवेचन है । दूसरे शब्दों में, शब्दों की व्याख्या करने की प्रक्रिया अनुयोग है।
रचनाकाल एवं रचयिता- इस आगम के रचयिता अथवा संकलनकर्ता आर्यरक्षित हैं। उनका काल वी.नि. संवत् ८२७ से पूर्व का है, इसलिए यही काल अनुयोगद्वार की रचना माना गया है। यह तो सर्वविदित तथ्य है कि आगम को पृथक्त्वानुयोग अर्थात् चार अनुयोगों में उन्होंने ही विभाजित किया था। आगम के मूल अनेकान्तभाव को विस्मृत कर आगे के शिष्य कहीं
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