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जैन आगम : एक परिचय]
५१ छोटा होने पर भी पहले दीक्षित मुनि पूज्य होता है। इनके अतिरिक्त विनयसमाधि, श्रुतसमाधि, तपसमाधि और आचार-समाधि-चार समाधियों का वर्णन है। इनके चार-चार भेद बताये हैं। दसवें सभिक्खु अध्ययन में भिक्षु के लक्षण बताये हैं।
दस अध्ययनों के अतिरिक्त दो चूलिकाएँ हैं-पहली रतिवाक्या और दूसरी विवित्तचर्या । रतिवाक्या में बताया गया है कि प्राणियों की असंयम में सहज ही रति और संयम में अरति होती है। विवित्तचर्या में श्रमणों की चर्या, गुणों और नियमों का निरूपण है।
विशेषताएँ- चार अनुयोगों में दशवैकालिक का समावेश चरणकरणानुयोग में होता है। इसमें चरण (मूलगुण) और करण (उत्तरगुण) इन दोनों का समावेश है । इसका वाक्यशुद्धि अध्ययन तो जन-साधारण के लिए भी बहुत उपयोगी है। अपनी भाषा और वाणी पर विवेकपूर्ण संयम रखकर मानव अपने और सम्पूर्ण समाज के जीवन में सुख-सरिता प्रवाहित कर सकता है।
(३) नन्दीसूत्र- नन्दीसूत्र को चूलिकासूत्र भी कहा जाता है। चूलिकासूत्रों में अवशिष्ट विषयों का वर्णन या वर्णित विषयों का स्पष्टीकरण होता है । आधुनिक भाषा में चूलिका को परिशिष्ट कहा जा सकता है। नन्दीसूत्र भी आगम साहित्य के लिए परिशिष्ट का कार्य करता है। ___ . रचयिता एवं रचनाकाल- नन्दीसूत्र के रचयिता देववाचक हैं। इनका समय वीर नि.संवत् ९८० है। अतः यही काल प्रस्तुत आगम की रचना का माना जा सकता है।
विषयवस्तु- इस आगम की रचना गद्य और पद्य दोनों में हुई
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