________________
५०
[जैन आगम : एक परिचय विषयवस्तु- इस आगम के दस अध्ययन हैं। इनमें पाँचवें अध्ययन के दो और नवें अध्ययन के चार उद्देशक हैं । चौथा और नवाँ अध्ययन गद्य-पद्यात्मक है और शेष अध्ययन पद्यात्मक हैं।
इसके प्रथम अध्ययन का नाम द्रुमपुष्पिका है। इसमें धर्म का स्वरूप बताकर श्रमण द्वारा अहिंसा के विवेकयुक्त आचरण का निर्देश है। दूसरे अध्ययन सामण्णपुव्वयं में धृति-दृढ़ता की प्रेरणा है तथा रथनेमि-राजीमती का प्रसंग भी संकेतित है। तीसरे अध्ययन खुड्डियारबंधकहा में बताया गया है कि जिस श्रमण में धृति नहीं होती उसके लिए आचार-अनाचार का भेद भी नहीं होता। चतुर्थ अध्ययन छज्जीवणिया में षट्जीवनिकाय का वर्णन करते हुए श्रमण को इनकी विराधना से दूर रहने की प्रेरणा दी गई है। पाँच महाव्रतों का तथा छठे रात्रिभोजनविरमणव्रत का वर्णन इसमें है। पाँचवे अध्ययन पिंडेसणा में गवेषणैषणा, ग्रहणैषणा
और परिभोगैषणा का वर्णन कर श्रमण की निर्दोष तथा आदर्श भिक्षा-विधि पर प्रकाश डाला गया है । छठे अध्ययन महायारकहा में अनाचार (अनाचीर्ण) के विविध पहलुओं पर विचार किया गया है। सातवें अध्ययन वक्कसुद्धि (वाक्य शुद्धि) में साधु को किस प्रकार की भाषा बोलनी चाहिए, यह बताया गया है। आठवें अध्ययन आयारपणिही (आचार प्रणिधि) में आचार निधि को प्राप्त करके किस प्रकार रहना चाहिए-यह निर्देश है । नवें अध्ययन विणयसमाही (विनय समाधि) में 'विनय' शब्द का प्रयोग आचार एवं उसकी विविध धाराओं में हुआ है। आचार्य के साथ शिष्य को कैसा व्यवहार करना चाहिए, विनय और अविनय का भेद एवं परिणाम बताया गया है। साथ ही कहा गया है कि आयु में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org