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जैन आगम : एक परिचय ]
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एकान्तभाव ग्रहण करके मिथ्या आग्रही न बन जायें इसीलिए उन्होंने नयों का विभाग भी किया था ।
विषयवस्तु - इस आगम में चार द्वार हैं, १८९९ श्लोक प्रमाण मूल पाठ है, १५२ गद्यसूत्र हैं और १४३ पद्यसूत्र हैं ।
पंच ज्ञान से मंगलाचरण करने के उपरान्त प्रथम आवश्यकद्वार ( अनुयोग ) शुरू होता है। आवश्यकसूत्र का अंगों के पश्चात् सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि श्रमण जीवन का प्रारम्भ ही आवश्यकसूत्र में निरूपित सामायिक से होता है। प्रतिदिन प्रात: और सन्ध्या के समय श्रमण जीवन की जो आवश्यक क्रिया हैं, उनकी शुद्धि और आराधना का निरूपण आवश्यकसूत्र में हैं ।
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यहाँ आवश्यक के नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव आदि निक्षेपों की दृष्टि से विवेचन किया गया है। सामायिकरूप प्रथम अध्ययन के उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय इन चारो द्वारों से चर्चा की गयी है ।
अनुयोगद्वार का पहला द्वार उपक्रम है, और दूसरा निक्षेप है । निक्षेप के ओघनिष्पन्ननिक्षेप, नामनिष्पन्ननिक्षेप और सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षेप तीन भेद किये गये हैं। इसके बाद निक्षेप की विस्तृत चर्चा है ।
तीसरा द्वार अनुगम है। इसके सूत्रानुगम और निर्युक्त्यनुगम, ये दो भेद बताये गये हैं ।
चौथा द्वार नय है । इसमें नैगम आदि सात नयों का स्वरूप बताया गया है ।
महत्व - इस आगम में महत्वपूर्ण जैन पारिभाषिक शब्द सिद्धान्तों
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