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जैन आगम : एक परिचय]
सम्बन्धी विचारणा की दृष्टि से यह आगम महत्वपूर्ण है। इसकी प्रशंसा पश्चिमी विद्वानों ने भी की है।
(६-७) सूर्यप्रज्ञप्ति और चन्द्रप्रज्ञप्ति- ये क्रमशः छठवें और सातवें उपांग है।
विषयवस्तु- ये दोनों ही ग्रन्थ ज्योतिष सम्बन्धी हैं । सूर्यप्रज्ञसि में सूर्य आदि ज्योतिष चक्र का वर्णन है और चन्द्रप्रज्ञप्ति में चन्द्र आदि ज्योतिष चक्र का। सूर्यप्रज्ञप्ति में एक अध्ययन, २० प्राभृत और मूल पाठ २२०० श्लोक प्रमाण है। इतना ही परिमाण चन्द्रप्रज्ञप्ति का है।
इनमें आकाशीय ज्योतिष (Astronomy) के अतिरिक्त फलित ज्योतिष (Astrology) भी मिलती है। मुहूर्तशास्त्र की नींव इन्हीं ग्रन्थों के आधार पर पड़ी। क्योंकि चन्द्रप्रज्ञप्ति में जो नक्षत्रों आदि के स्वभाव एवं गुणों का वर्णन किया गया, वही आगे चलकर मुहूर्तशास्त्र के रूप में विकसित हुआ। ____ महत्व- इन दोनों ग्रन्थों की प्रशंसा विन्टरनित्स, शुब्रिग आदि पश्चिमी विद्वानों ने भी की है। शुबिंग ने तो स्पष्ट कहा है कि सूर्यप्रज्ञप्ति के अध्ययन बिना प्राचीन भारतीय ज्योतिष को समझा ही नहीं जा सकता। डॉ. धिवौ ने अपने शोधपूर्ण निबन्ध में बताया है कि प्राचीन ज्योतिष्क वेदांग ग्रन्थ के सिद्धान्त भी सूर्यप्रज्ञप्ति के सिद्धान्तों के समान ही थे और ये सिद्धान्त सर्वमान्य थे।
- इस प्रकार इन ग्रन्थों में ज्योतिष सम्बन्धी महत्वपूर्ण ज्ञान का समावेश हुआ है।
(८-१२) निरयावलिया आदि पाँच सूत्र- निरयावलिया में पाँच उपांग समाविष्ट है-(१) निरयावलिका या कल्पिका (२) Jain Education International
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