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________________ [जैन आगम : एक परिचय कल्पावतंसिका (३) पुष्पिका, (४) पुष्पचूलिका और (५) वृष्णिदशा। पहले ये पाँचों उपांग निरयावलिया के नाम से ही विश्रुत थे किन्तु बाद में बारह अंगों के साथ संगति बिठाने के लिए इन्हें पृथक्-पृथक् गिना जाने लगा। ___इस आगम में १ श्रुतस्कन्ध, ५ वर्ग, ५२अध्ययन और मूल पाठ ११०० श्लोक प्रमाण है। प्रथम वर्ग निरयावलिका के १० अध्ययन हैं । इसमें श्रेणिक की रानी चेलना का दोहद, कूणिक का जन्म, पिता को कैद करके राजा बनना, चेटक से युद्ध आदि का वर्णन है । इस युद्ध में कूणिक के नौ भाई भी मरण प्राप्त करते हैं। दूसरे वर्ग कल्पावतंसिका में श्रेणिक के पौत्रों का वर्णन है। इसके भी १० अध्ययन हैं। श्रेणिक के पौत्र भगवान महावीर के पास दीक्षा ग्रहण करके स्वर्ग प्राप्त करते हैं। तीसरा वर्ग पुष्पिका है। इसके भी दस अध्ययन हैं। इस उपांग में स्व-समय और पर-समय के ज्ञान की दृष्टि से कथाओं का संकलन है। इन कथाओं में कौतूहल की प्रधानता है और परलोक के जीवन पर अधिक प्रकाश डाला गया है। इनमें पुनर्जन्म और कर्मसिद्धान्त की पृष्ठभूमि है। चौथा वर्ग पुष्पचूलिका है। इसके अध्ययन हैं। इसमें भी कथाएँ हैं और कथाओं का प्रेरणातत्व शुद्ध श्रमणाचार है। पाँचवा वर्ग वृष्णिदशा है । इसके अध्ययन हैं। इसमें यदुवंशी राजाओं के विविध प्रसंगों का वर्णन है । यह वर्णन भी कथाओं के माध्यम से हुआ है। प्रत्येक अध्ययन में एक व्यक्ति का जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
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