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________________ जैन आगम : एक परिचय] __ का उल्लेख है । ७२ कलाएँ, ४ परिषद्, कलाचार्य, शिल्पाचार्य, धर्माचार्य का निरूपण है। पार्श्वनाथ-परम्परा की जानकारी दी गयी है। काव्य और कथाओं के विकास के लिए वार्तालाप और संवादों का आदर्श रूप इसमें मिलता है। इन सब बातों से यह आगम महत्वपूर्ण है। (३) जीवाभिगम- यह तीसरा उपांग आगम है। आचार्य मलयगिरि ने इसे स्थानांग का उपांग माना है। विषयवस्तु- इसमें जीव और अजीव के भेद-प्रभेदों की चर्चा की गयी है। इसकी रचना प्रश्नोत्तर शैली में है। गौतम गणधर प्रश्न करते है और भगवान महावीर समाधान देते हैं। इसमें ९ प्रतिपत्ति (प्रकरण), एक अध्ययन, १८ उद्देशक, ४७५० श्लोक प्रमाण पाठ उपलब्ध है । २७२ गद्य-सूत्र और ८१पद्य-गाथा हैं। विशेषताएँ- इसमें द्वीप-सागरों का विस्तृत वर्णन है। १६ प्रकार के रत्न, अस्त्र-शस्त्रों के नाम, धातुओं के नाम, कल्पवृक्ष, विविध प्रकार के उपकरण; पात्र, आभूषण, भवन, वस्त्र, ग्राम, नगर, राजा आदि के नाम; त्यौहार, उत्सव, नट, यान, कला, युद्ध, रोग आदि का भी उल्लेख है। उद्यान, पुष्करिणी आदि का सरस वर्णन है। .इस प्रकार कला और सांस्कृतिक दृष्टि से भी इस आगम का महत्व है। (४)प्रज्ञापना-यह चतुर्थ उपांग आगम है। आचार्य मलयगिरि ने इसे समवायांग का उपांग माना है किन्तु स्वयं शास्त्रकार ने इसे दृष्टिवाद से सम्बन्धित बताया है। इसके रचयिता श्यामार्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only "www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
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