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[ जैन आगम : एक परिचय
विषयवस्तु - इसके दो अध्ययन हैं - प्रथम का नाम समवसरण है और दूसरे का नाम उपपात है। इसका प्रारम्भिक अंश गद्यात्मक और अन्तिम अंश पद्यात्मक है, मध्य भाग में गद्य-पद्य मिश्रित है । इसमें ४३ सूत्र हैं ।
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विशेषता - इस उपांग आगम की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें जिन विषयों की चर्चा की गयी है, उनका पूर्ण विवेचन है । भगवान महावीर के समवसरण का सजीव चित्रण और उनकी उपदेश-विधि इसमें सुरक्षित है। इसमें नगर, चैत्य, राजा-रानियों आदि का सांगोपांग वर्णन है । यह वर्णन अन्य आगमों के लिए आधारभूत है ।
(२) राजप्रश्नीय- यह दूसरा उपांग है। आचार्य मलयगिरि ने इसे सूत्रकृतांग का उपांग माना है।
विषयवस्तु - यह आगम दो भागों में विभक्त है । पहले विभाग में सूर्याभ नामक देव भगवान महावीर के सामने उपस्थित होकर विभिन्न प्रकार के नृत्य और नाटक करता है । दूसरे विभाग में भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के अनुयायी केशीश्रमण और श्वेताम्बिका नगरी के राजा प्रदेशी के मध्य हुए प्रश्नोत्तर हैं । विभिन्न उदाहरणों और दृष्टान्तों से केशी श्रमण आत्मा की सिद्धि करते हैं और राजा प्रदेशी को श्रावकव्रत ग्रहण करवाते हैं ।
विशेषताएँ- इस आगम की अनेक विशेषताएँ हैं । इसमें स्थापत्य, संगीत और नाट्यकला के अनेक तत्त्वों का समावेश हुआ है । ३२ प्रकार के नाटकों का वर्णन है । लेखन सम्बन्धी सामग्री का निर्देश है। साम, दाम, दण्ड नीति के अनेक सिद्धान्तों
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