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________________ जैन आगम : एक परिचय] ३७ विषयवस्तु- इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं-प्रथम दुःखविपाक और दूसरा सुखविपाक । दोनों के दस-दस अध्ययन हैं । प्रत्येक अध्ययन में एक-एक व्यक्ति का जीवन-प्रसंग वर्णित हुआ है। प्रथम श्रुतस्कन्ध दुखविपाक में ऐसे व्यक्तियों के जीवन-प्रसंग हैं जिन्हें दुष्कर्मों के विपाक के कारण दुख भोगना पड़ा। दूसरे श्रुतस्कंध में सुकृत करने वाले व्यक्तियों के जीवन प्रसंग हैं। इन्हें शुभकर्मों के विपाक के फलस्वरूप सुख प्राप्त हुआ। सुख-विपाक में सुबाहुकुमार का जीवन-प्रसंग विस्तार के साथ वर्णित हुआ है। विशेष बात यह है कि दुखविपाक में हिंसा, चोरी और अब्रह्म के कटु परिणामों का दिग्दर्शन कराने वाले प्रसंग तो हैं, किन्तु असत्य और परिग्रह के दुष्परिणामों को दिखाने वाले प्रसंग नहीं हैं। इसी प्रकार सुख-विपाक में दान के शुभ फलों का दिग्दर्शन है लेकिन अन्य धर्मों की आराधना से होने वाले शुभफलों को दिखाने वाला कोई जीवन-प्रसंग नहीं है। ___उपांग आगम साहित्य- उपांगों की गणना अंगबाह्य आगमों में होती है। ये मूलत: बारह हैं और प्रत्येक उपांग प्रत्येक अंग से सम्बन्धित माना गया है। इनका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है: (१) औपपातिक सूत्र- यह जैन आगम साहित्य का पहला उपांग है । अंग आगमों में जो स्थान आचारांग का है, उपांग साहित्य में वही स्थान इसका (औपपातिक सूत्र का) है। १ विशेष-बारहवाँ अंग दृष्टिवाद विलुप्त हो चुका है, इसलिए उपलब्ध बत्तीस आगमों से उसका उल्लेख नहीं है और इसी कारण यहाँ उसका परिचय नहीं दिया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
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