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________________ [जैन आगम : एक परिचय भी बहुत महत्व है। सभी साधक ऐतिहासिक पुरुष हैं। इसमें भगवान महावीर के युग की सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों की भी भलीभांति जानकारी मिलती है। (१०) प्रश्नव्याकरणसूत्र- यह दसवाँ अंग आगम है। इसका प्राकृत नाम पण्हावागरणाई है। विषयवस्तु- प्रश्नव्याकरण का अर्थ प्रश्नों का व्याकरण अर्थात् निर्वचन, उत्तर एवं निर्णय है । इस आगम के दो श्रुतस्कंध हैं । प्रथम श्रुतस्कंध आस्त्रवद्वार है और द्वितीय संवरद्वार। प्रथम श्रुतस्कंध के पाँच अध्ययन हैं जिनमें क्रमशः हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्मचर्य और परिग्रह का विस्तृत विश्लेषण है। ये मन के रोग हैं। इनका उपचार दूसरे श्रुतस्कंध संवरद्वार में बताया गया है। इसके भी पाँच अध्ययन हैं। इनमें क्रमशः अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का विस्तृत विवेचन है। ये पाँचों ही मनोरोग के उपचार हैं। इसमें पाँचों संवरद्वारों की २५ चारित्र भावनाएँ बतायी गयी हैं। ____ महत्व- यद्यपि आस्रव और संवर का निरूपण आगम में अनेक स्थलों पर हुआ है लेकिन प्रस्तुत आगम प्रश्नव्याकरण में जितना विस्तार और सूक्ष्मतापूर्ण वर्णन है, वह अनूठा है। ऐसा वर्णन अन्य आगम साहित्य में उपलब्ध नहीं है। (११) विपाकसूत्र- यह द्वादशांगी का ग्यारहवाँ अंग है। इसमें शुभ-कर्म और अशुभ-कर्मों के विपाक का वर्णन है। इसमें कर्मसिद्धान्त की मीमांसा नहीं है, वरन् उदाहरण शैली में कर्मों के विपाक का वर्णन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
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