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________________ जैन आगम : एक परिचय ] से क्षमायाचना करते हैं । ( ८ ) अन्तकृत्दशा - यह आठवाँ अंग आगम है। इसमें जन्ममरण की परम्परा का अन्त करने वाले साधकों का उल्लेख है । इसलिए इसका नाम भी अन्तकृत् है । ३५ परिमाण - इस आगम में एक श्रुतस्कन्ध, ८ वर्ग, ९० अध्ययन, ८ उद्देशनकाल और समुद्देशनकाल हैं । इसमें संख्यात पद और संख्यात हजार अक्षर हैं । इसके आठों वर्ग क्रमशः १०, ८, १३, १०, १०, १६, १३ और १० अध्ययनों में विभक्त हैं । विषयवस्तु प्रथम दो वर्गों में गौतम आदि वृष्णिकुल १८ राजकुमारों की साधना का वर्णन हैं । ये सभी उग्र तप करके मुक्ति प्राप्त करते हैं। तीसरे, चौथे, पाँचवे वर्ग में भगवान अरिष्टनेमि के युग के साधकों का वर्णन हैं । छठे, सातवें और आठवें वर्ग में महावीर युग के उग्र साधकों का वर्णन हैं । महत्व - इस सम्पूर्ण आगम में भौतिकता पर आध्यात्मिकता की विजय दिखायी गयी है । सर्वत्र तप की, उत्कृष्ट साधना की ज्योति विकीर्ण हो रही है। (९) अनुत्तरौपपातिकदशा- यह नवाँ अंग आगम है। इसमें उन साधकों का वर्णन हुआ है जो उत्कृष्ट साधना करके अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए और फिर मनुष्य जन्म पाकर मोक्ष प्राप्त करेंगें । विषयवस्तु - इस आगम में ३ वर्ग हैं जो क्रमशः १०,१३ और १० अध्ययनों में विभक्त हैं । इन ३३ अध्ययनों में भगवान महावीरकालीन ३३ महान साधक - आत्माओं का वर्णन है । महत्व - इस आगम का सामाजिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
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