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________________ [जैन आगम : एक परिचय भेद-अभेद की व्याख्या की दृष्टि से यह आगम महत्वपूर्ण है। (४) समवायांग- यह चौथा अंग आगम है। इसमें जीवअजीव आदि पदार्थो का समावतार है, इसलिए इसका नाम समवाय है। . रचनाशैली- स्थानांग की भाँति इसकी रचना भी संख्या के आधार पर की गयी है। इनमें से सौ तक की संख्या को आधार बनाकर विषय का निरूपण हुआ है। विषय वस्तु- इसमें जीव-अजीव आदि तत्वों का समवतार, एक से सौ तक की संख्या का विकास और द्वादशांग गणिपिटक का परिचय है। . इसमें १०० समवायों तक क्रमपूर्वक संख्याक्रम चला है। उसके बाद १५०, २००, २५० आदि से लेकर कोटि समवाय तक आये हैं। तीर्थंकर (भूत-भविष्य-वर्तमानकालीन), चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, लोक, आदि की जानकारी दी गयी है। सूत्र के अन्त में प्रस्तुत सूत्र की संक्षिप्त सूची भी दी गयी है। इस आगम में जिज्ञासु एंव शोधकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण सामग्री का संकलन हुआ है। (५) भगवती- यह पाँचवाँ अंग आगम है। इसका दूसरा नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति अथवा विवाहपण्णति है । यह आगम अत्यन्त विशाल है। रचनाशैली- इस आगम की रचना प्रश्नोत्तर शैली में हुई है। प्रमुख रूप से गणधर गौतम प्रश्न करते हैं और भगवान महावीर उनका समाधान करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
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