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जैन आगम : एक परिचय ]
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सातवाँ अध्ययन नालंदीय है । इस अध्ययन में गणधर गौतम का पार्वापत्य पेढालपुत्र के साथ संवाद होता है और पेढालपुत्र चातुर्याम धर्म को छोड़कर पंचयाम धर्म स्वीकार कर लेते हैं ।
इस प्रकार सूत्रकृतांगसूत्र में दार्शनिक चर्चाओं के साथ आचारधर्म का सुन्दर निरूपण हुआ है ।
( ३ ) स्थानांग - यह तीसरा अंग आगम है । स्थान शब्द अनेकार्थवाची है । स्थान शब्द का एक अर्थ 'मान' अथवा 'परिमाण', दूसरा अर्थ 'उपयुक्त' और तीसरा अर्थ 'विश्रान्ति स्थल' है । इसमें संख्या क्रम से जीव आदि तत्त्वों की प्ररूपणा की गयी है ।
रचनाशैली- इस आगम की रचनाशैली में कुछ विशेषता है । यहाँ विषय को नहीं, संख्या को प्रधानता दी गयी है । संख्या के अनुसार विषय बताये गये है- जैसे ४ प्रकार के देव, ४ प्रकार के मनुष्य, ४ प्रकार के श्रोता, ५ प्रकार के ज्ञान, ९ निधियाँ आदि । ऐसी शैली महाभारत के वनपर्व के १३४ वें अध्याय तथा बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तरनिकाय, धर्मसंग्रह आदि में भी मिलती है ।
विषयवस्तु इस आगम में संख्याक्रम के अनुसार स्वसमय, परसमय, लोक, अलोक आदि की विवेचना की गयी है ।
इसमें दस अध्ययन, इक्कीस उद्देशक और ३७७० सूत्र हैं । दसों अध्ययन एक, दो, तीन, चार, पाँच, छह, सात, आठ, नौ, दस- इस प्रकार संख्या के आधार पर विभाजित हैं और इनमें संख्या के अनुसार ही विषय का निरूपण है । स्थानांगसूत्र की चौभंगियाँ विशेष प्रसिद्ध हैं ।
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