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[ जैन आगम : एक परिचय
एवं मोक्षमार्ग की साधना का सुपरिणाम बताया गया है । सोलहवाँ अध्ययन गाथा है । इसमें श्रमण, माहन, भिक्षु और निर्ग्रन्थ किसे कहना चाहिए, यह बताया है ।
द्वितीय श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन का नाम पुंडरीक है । इसमें बताया गया है कि यह संसार पुष्करिणी है, उसमें कर्मरूपी जल एवं काम-भोग का कीचड़ भरा है। उसके मध्य में एक पुंडरीक ( कमल) है । उस कमल को अनासक्त, निस्पृह और अहिंसादि महाव्रतों को पालन करने वाले साधक ही प्राप्त कर सकते हैं।
द्वितीय अध्ययन का नाम क्रियास्थान है । धर्मक्रिया और अधर्मक्रिया का वर्णन करके धर्मक्रिया की प्रेरणा दी गयी है। तृतीय अध्ययन का नाम आहारपरिज्ञा है। इसमें आहार की विस्तृत चर्चा है ।
चतुर्थ अध्ययन प्रत्याख्यानपरिज्ञा है। इसमें पाप का प्रत्याख्यान करने की आवश्यकता बतायी गयी है ।
पाँचवाँ अध्ययन आचारश्रुत व अनगारश्रुत है । इसमें बताया गया है कि आचार के सम्यक् पालन के लिए बहुश्रुत होना आवश्यक है। साथ ही श्रमण को अमुक-अमुक प्रकार की भाषा बोलने का भी निर्देश है ।
छठवाँ अध्ययन आर्द्रकीय है। इसमें अनार्यदेश में जनमें राजकुमार आर्द्रक के जैन मुनि बनने का उल्लेख करने के पश्चात् उनके द्वारा गोशालक, हस्तीतापस आदि के मतों का निरसन कराया गया है।
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