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[जैन आगम : एक परिचय
विक्रम संवत् १३३४ में रचित प्रभावकचरित्र में सर्वप्रथम इस वर्गीकरण का उल्लेख मिलता है। उपाध्याय श्यामसुन्दर गणी ने अपने समाचारी शतक में भी इस वर्गीकरण का उल्लेख किया है।
नियूंढ और कृत आगम __ रचना की दृष्टि से जैन आगमों का निर्माण दो प्रकार से हुआ है-(१) कृत (२) नियूंढ।
जिन आगमों की रचना स्वतन्त्र रूप से हुई है वे कृत कहलाते हैं जैसे आचारांग आदि और समस्त उपांग साहित्य; तथा जिन आगमों की रचना पूर्वो तथा द्वादशांगी से उद्धृत करके हुई है वे नियूंढ आगम कहलाते हैं। नियूंढ आगम ये हैं-(१) आचार चूला, (२) दशवैकालिक, (३) निशीथ, (४) दशाश्रुतस्कन्ध, (५) बृहत्कल्प, (६) व्यवहार, (७) उत्तराध्ययन का परीषह अध्ययन।
आगमों की भाषा आगमों की भाषा अर्द्धमागधी है, जिसे सामान्यतः प्राकृत कहा जाता है। तीर्थंकर भगवान इसी भाषा में उपदेश करते हैं। समवायांग में स्पष्ट लिखा है
भगवं च णं अद्धमागहीए भाषाए धम्ममाक्खाइ। - भगवान अर्ध-मागधी भाषा में धर्मकथन करते हैं।
तीर्थंकर भगवान के इस भाषा में धर्मोपदेश करने का कारण बताते हुए आचार्य हरिभद्र अपनी दशवैकालिकवृत्ति में कहते हैं
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