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जैन आगम : एक परिचय ]
बालस्त्रीमंदमूर्खाणां नृणां चारित्रकांक्षिणाम् । अनुग्रहार्थ सर्वज्ञैः सिद्धान्तः प्राकृते कृतः ॥
- चारित्र की साधना-आराधना की इच्छा रखने वाले मन्दबुद्धि, बालक, स्त्री-पुरुषों पर अनुग्रह करके सर्वज्ञ भगवान सिद्धान्त की प्ररूपणा जन-सामान्य के हित के लिए सुबोध प्राकृत भाषा में करते हैं ।
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अर्द्धमागधी भाषा वस्तुतः मागधी और अठारह देशज भाषाओं का मिश्रण है। इस मिश्रण के कारण न यह पूर्ण रूप से मागधी है और न देशज; बल्कि अर्द्धमागधी है । यही भाषा भगवान महावीर के समय में जन सामान्य की सर्वप्रचलित भाषा थी ।
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आगम विच्छेद का क्रम
भगवान महावीर के निर्वाण के १७० वर्ष पश्चात् श्रुतकेवली आचार्य भद्रवाहु का स्वर्गवास हुआ। उनके स्वर्गवास के साथ ही अन्तिम चार पूर्व अर्थ की दृष्टि से विलुप्त हो गये और जब वी .नि. सं. २१६ में आर्य स्थूलभद्र का स्वर्गगमन हुआ तो शब्द की दृष्टि से भी इन चारों पूर्टों का लोप हो गया। आर्य वज्रस्वामी तक दश पूर्वों की परम्परा चलती रही। उनका स्वर्गवास वि.सं. ८१ में हुआ और उनके साथ ही दसवाँ पूर्व भी विलुप्त हो गया । दुर्बलिका पुष्यमित्र के स्वर्गवास (वि.सं. १३४) के साथ ही नवाँ पूर्व भी विच्छिन्न हो गया ।
यह क्रम देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण तक चलता रहा। स्वयं देवर्द्धिगणी भी एक पूर्व से अधिक श्रुत के ही ज्ञाता थे । आगम साहित्य का बहुत सा भाग विलुप्त होने पर भी कुछ मौलिक भाग
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