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[ जैन आगम : एक परिचय
शताब्दी में लोकागच्छीय स्थानकवासी आचार्य धर्मसिंहजी ने टब्बाओं की रचना की । इन्होंने आगम ग्रन्थों का अध्ययन करके स्थानकवासी परम्परा मान्य २७ आगमों पर टब्बे लिखे । ये टब्बे मूलस्पर्शी और साधारण जनों के लिए आगमों के अर्थ को समझने के लिए बड़े उपयोगी सिद्ध हुए। टब्बों के अतिरिक्त समवायांग की हुण्डी, भगवती का यन्त्र, प्रज्ञापना का यन्त्र, जीवाभिगम का यन्त्र आदि अनेक ग्रन्थों की रचना की । उनका आगम ज्ञान गम्भीर था । किन्तु खेद है कि इनकी एक भी रचना प्रकाशित नहीं हुई है । अनुवाद विवेचन - युग
बीसवीं शताब्दी में अनुवाद युग प्रारम्भ हुआ । आगम ग्रन्थों के अनुवाद हिन्दी, अंग्रजी और गुजराती - तीनों भाषाओं में हुए ।
अंग्रेजी में जर्मन विद्वान डॉ. जेकोबी ने आचारांग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन और कल्पसूत्र - इन चार अनुवाद किया, साथ ही विस्तृत खोजपूर्ण भूमिका लिखी । उपासकदशा, अन्तकृत् दशा, अनुत्तरौपपातिक और विपाक तथा निरयावलिया के अंग्रेजी अनुवाद भी हो चुके हैं। गुजराती में पं. बेचरदास जोशी, पं. दलसुखभाई मालवणिया आदि विद्वानों ने आगमों के अनुवाद, संपादन तथा विवेचन करके उनको सार्वजनीन उपयोगिता दी है। मुनिश्री सन्तबालजी तथा श्री गोपालदास जीवाभाई पटेल ने आगमों का गुजराती भावानुवाद किया है, जो काफी सुन्दर व लोकप्रिय सिद्ध हुए हैं ।
हिन्दी में पूज्य श्री अमोलक ऋषिजी महाराज, पूज्य आचार्य श्री आत्मारामजी महाराज, आचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज,
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