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________________ जैन आगम : एक परिचय] १०१ टीकाओं का काल मध्ययुग तक अर्थात् विक्रम की १७वीं१८वीं शताब्दी तक चलता रहा। __ आचार्य श्री घासीलालजी महाराज- इसका जन्म सं. १९४१ में उदयपुर के निकट जसवन्तगढ़ मेवाड़ में हुआ। इन्होंने स्थानकवासी परम्परा मान्य ३२ आगमों पर संस्कृत में टीकाएँ लिखीं। ये पहले आचार्य है जिन्होंने एक साथ ३२ आगमों पर टीकाएँ लिखी हैं। टीकाओं में कहीं-कहीं इनका स्वतन्त्र चिन्तन भी परिलक्षित हुआ है। लोकभाषाओं में रचित व्याख्याएँ-टब्बा संस्कृत, प्राकृत भाषाओं में टीकाएँ अधिक बढ़ जाने और उनमें दार्शनिक चर्चा चरम-सीमा तक पहुँच जाने के कारण वे दुर्बोध हो गयी। साथ ही संस्कृत भाषा जन साधारण की भाषा कभी नहीं रही। वह विशिष्ट विद्वानों, तार्किकों और पण्डितों की भाषा थी। इसलिए संस्कृत टीकाएँ सामान्य जनता की बुद्धि से दूर ही रही। साथ ही काल के प्रवाह से १५वीं शताब्दी आते-आते संस्कृत भाषा कुछ ही विद्वानों तक सिमटकर रह गयी और जन साधारण को संस्कृत में लिखी टीकाओं को समझना बहुत ही कठिन हो गया तब लोकभाषाओं में सरल-सुबोध टीकाएँ लिखी गयीं। साधु रत्नसुरि ने वि.सं. १५७२ में प्राचीन राजस्थानी मिश्रित गुजराती में आचारांग, सूत्रकृतांग आदि पर बालावबोध रचनाएँ की। प्रसिद्ध टब्बाकार धर्मसिंह मुनि- विक्रम की अठारहवीं Jain Education International For Private & Personal Use Only FOT www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
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