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________________ १०० [जैन आगम : एक परिचय (३) जीवाभिगमोपांगटीका (४) प्रज्ञापनोपांगटीका (५) चन्द्रप्रज्ञप्त्युपांगटीका (६) सूर्यप्रज्ञप्त्युपांगटीका (७) नन्दीसूत्रटीका (८) व्यवहारसूत्र वृत्ति (९) बृहत्कल्पपीठिकावृत्ति (अपूर्ण) (१०) आवश्यकवृत्ति (अपूर्ण) (११) पिण्डनियुक्ति टीका (१२) ज्योतिष्कर ण्ड क टीका (१३) धर्मसंग्रहणीवृत्ति (१४) कर्मप्रकृतिवृत्ति (१५)पंचसंग्रहवृत्ति (१६) षडशीतिवृत्ति (१७) सप्ततिकावृत्ति (१८) बृहत्संग्रणीवृत्ति (१९) बृहत्क्षेत्रसमासवृत्ति, और (२०) मलयगिरिशब्दानुशासन। आगमप्रभावक मुनि पुण्यविजयजी ने व्याख्याकारों में इनका स्थान सर्वोत्कृष्ट माना है। (१०) मलधारी हेमचन्द्र- ये विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। इनकी स्मरण-शक्ति बहुत प्रबल थी। भगवती जैसा विशाल आगम इन्हें कण्ठस्थ था। ये प्रवचन-कला में भी बहुत दक्ष थे। इन्होंने सर्वप्रथम 'उपदेशमाला' और 'भवभावना'-ये दो मूल ग्रन्थ लिखे और फिर इन पर वृत्तियाँ लिखीं। इसके बाद अनुयोगद्वार, जीवसमास और बन्धशतक पर वृत्तियों की रचना की। आचार्य हरिभद्रकृत मूल आवश्यकवृत्ति पर टिप्पण और विशेषावश्यकभाष्य पर विस्तृत वृत्ति लिखी। इन टीकाकारों के अतिरिक्त शताधिक अन्य टीकाकार भी हुए जिन्होंने अपनी रचनाओं से जैन-साहित्य की वृद्धि की। आगम ग्रन्थों में कल्पसूत्र पर अनेक टीकाएँ लिखी गयी,जैसे कल्पान्तर्वाच्य, कल्पकिरणावली, कल्पदीपिका, कल्पव्याख्यानपद्धति आदि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
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