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जैन आगम : एक परिचय]
१०३ पूज्य श्री हस्तीमलजी महाराज ने भी आगमों के सुन्दर अनुवाद तथा हिन्दी व्याख्या की है। ___इस अनुवाद की परम्परा को श्री सौभाग्यमलजी महाराज, अनुयोग प्रवर्तक मुनि श्री कन्हैयालालजी 'कमल' आदि ने भी आगे बढ़ाया है। तेरापंथ के आचार्य श्री तुलसीजी एवं मुनि श्री नथमलजी ने आगमों का सुन्दर सम्पादन, विवेचन आदि करके आगमज्ञान की धारा को नया रूप व नया निखार दिया है।
उपसंहार- इस सम्पूर्ण विवेचन से स्पष्ट है कि देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण ने आगम-लेखन का जो महत्वपूर्ण और साहसपूर्ण कार्य किया था, उसकी परम्परा अब तक अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है। अनेक मनीषियों ने अपनी प्रबल प्रतिभा और प्रखर चिन्तन शक्ति से जैन-साहित्य के भण्डार की श्रीवृद्धि की है और कर रहे हैं।
यह संक्षिप्त परिचय जिज्ञासुओं के हृदय में आगमों के अध्ययन के प्रति रूचि जागृत करेगा, ऐसा मुझे द्दढ़ विश्वास है।
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