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इसमें सन्देह नहीं कि इस कृति में हरिभद्र की अपेक्षा काव्यात्मकता अधिक है। काव्यात्मक संकेत प्रारंभ से ही उपलब्ध होने लगते हैं। लूट में कुमार महेन्द्र का प्राप्त होना राजा दृढ़वर्मा को पुत्र प्राप्ति का संकेत करता है। इतना होने पर भी मूल कथा में अवान्तर कथाओं की संघटना, उनके पारस्परिक सम्बन्ध एवं चरित्रों के विश्लेषण क्रम के लिए उद्योतन सूरि अपने पूर्ववर्ती प्राकृत कथाकारों के प्राभारी हैं । कथा की दृष्टि से इस कृति में निम्न प्रमुख विशेषताएं पायी जाती हैं:--
(१) कथावस्तु के विकास में कथानकों का चमत्कारपूर्ण योग । (२) मनोरंजन के साथ उपदेश तत्त्व की योजना और लक्ष्य की दृष्टि से प्राधान्त
एकरूपता। (३) मूलवृत्तियों--क्रोध, मान, माया, लोभ और मोह के शोधन, मार्जन और
विलयन के अनेक रूप । (४) कथानक का आधार, आश्चर्यजनक घटना, कथावस्तु के विकास में जन्म
जन्मान्तर के संस्कारों का एक सबन जाल, विभिन्न कथानक रूढ़ियों का
प्रयोग एवं पात्र वैविध्य । (५) संवादों को प्रभावोत्पादकता तथा अलंकारों की सुन्दर योजना । (६) कथा संकेतों का सुन्दर सन्निवेश । (७) कथा को गतिशील और चमत्कारपूर्ण बनाने के लिए स्वप्न दर्शन, अश्वाप
हरण, एवं पूर्व जन्म के वृत्तान्त को सुनकर प्रणयोद्वोध प्रभृति कथानक
रूढ़ियों का प्रयोग हुआ है ।। (८) हूणराज तोरमान की लूटपाट जैसे ऐतिहासिक तथ्यों की योजता । (९) वाग्वदग्ध और व्यंग्यार्थक काव्य की छटा अनेक स्थलों पर उपलब्ध है। (१०) समासान्तपदावली, नये-नये शब्दों का प्रयोग, पदविन्यास की लय, संगीतात्मक
गति, भावतरलता एवं प्रवाहमय भाषा का समावेश । उक्त काव्यात्मक गुण इसे कथा की अपेक्षा श्रेष्ठकाव्य सिद्ध करते हैं। पैशाची भाषा का प्रयोग भी वर्तमान है । अपभ्रंश की प्रभावावलि भी दृष्टिगोचर होती
(११) चंडसोम, मानभट, मायादित्य प्रभृति नामकरणों में संज्ञाओं के साथ प्रतीक
तत्त्व भी अन्तहित है। चंडसोम शब्द परिस्थिति और वातावरण का विशदीकरण ही नहीं करता, अपितु क्रोध का प्रतीक है । इस प्रतीक द्वारा कृतिकार ने क्रोध की भीषणता को कहा नहीं है, बल्कि ग्यरूप में उपस्थित कर दिया है । इसी प्रकार मानभट मान का, मायादित्य माया
का, लोभदेव लोभ का एवं मोहदत्त मोह का प्रतीक है। (१२) जन्म-जन्मान्तर के संस्कारों का जाल पूर्व के कथाकारों के समान अपनाया
है, पर संयोग या चान्सतत्व में कुतहल का मिश्रण कर कथा प्रवाह में
सरसता उत्पन्न की है । (१३) विषय और कथाविस्तार की दृष्टि से यह कृति समुद्र है । उत्तम कथातत्त्व
काव्यतत्त्व को चमत्कृत करता है । (१४) जो जाणइ देसीयो भासामो लक्खणाइं धाऊ य ।
वय-णय-गाहा-छेयं कुंवलयमालंपि सो पढ़उ ।' १--कुव०, पृष्ठ २८१, अनु० ४२६ ।
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