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माता के साथ मायावी रूप में अनार्य व्यवहार करते हुए दिखलाया । यह व्यवहार उसे सहय नहीं हुआ, फलतः वह उसे पकड़ने को दौड़ा । इस घटना में चुलिनीपिता का शील बहुत ही निखरा है । माता का अपमान और उसके साथ अनार्य व्यवहार कोई भी गृहस्थ सहन नहीं कर सकता है । श्रतः वह माता के अपमानकारी को पकड़ने दौड़ता है । वह उसके दुष्कृत्य का फल चखा देना चाहता है । परिवार के बीच रहने वाला व्यक्ति इस प्रकार के नीच कृत्य का परिशोधन न करे, यह कैसे संभव है । ( कथातत्त्व की दृष्टि से चु लनीपिता का शील संवेदनशीलता की प्राणमयीमूर्छना उत्पन्न करने एवं अनुभूतिमूलक मानव चरित्र की अधिकाधिक भंगिमाओं के उतारचढ़ाव को प्रस्तुत करने में सक्षम है
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सद्दालपुत्र कथा तर्कमूलक है । भगवान् महावीर ने सद्दालपुत्र के समक्ष तर्क द्वारा नियतिवाद का खण्डन किया है । इस कथा में मानव मनोविज्ञान के श्रादिम सिद्धांत भी विद्यमान हैं । मंखलिपुत्र गोसाल सद्दालपुत्र को प्रसन्न करने के लिए भगवान महावीर की प्रशंसा करता है । उसे इस मानव मनोविज्ञान का पता है कि किसी की प्रिय वस्तु या प्रिय व्यक्ति की प्रशंसा कर देने से वह व्यक्ति प्रसन्न हो जाता है । प्रिय व्यक्ति में व्यक्ति अपनी श्रात्मा का श्रारोपण करता है । दर्शन की चर्चा रहने पर भी कथा प्रवाह में नहीं प्रायी है । ( घटनाएं क्रमबद्ध घटित होती हैं। यद्यपि घटना शैथिल्य विद्यमान है, तो भी तर्कसंगत व्यापारों का नियोजन रहने से वह विशेष खटकता नहीं है । साहित्यिक दृष्टि से रथ का वर्णन बहुत ह सुन्दर और लोकतत्व निकट है । इस कथा में संस्कृति और समाज का अच्छा चित्रण हुआ है ।
अन्तःकुद्दशा में उन तपस्वी स्त्री-पुरुषों की कथाएं हैं, जिन्होंने (अपने कर्मों का श्रन्त करके मोक्ष प्राप्त किया है। इसमें आठ वर्ग और ε२ उपदेश हैं । ( प्रत्येक उपदेश में किसी न किसी व्यक्ति का नाम अवश्य आता है ये समस्त कथाएं दो भागों में विभक्त हैं । आदि के पांच वर्गों की कथाओं का सम्बन्ध श्ररिष्टनेमि को साथ और शेष तीन वर्गों की कथाओं का सम्बन्ध महावीर तथा श्रेणिक के साथ हैं । - पाठक को महान् आश्चर्य होता है, जब वह राजकीय परिवार के स्त्री-पुरुषों को दीक्षा ग्रहण करते पाता है और सामूहिक रूप में आध्यात्मिक मुक्ति की आवाज बृहत्तर स्तर पर धर्म प्रसारण के लिए सुनता हैं ।
गजसुकुमार और अर्जुन की कथाएं हचिकर हैं । यद्यपि अधिकांश कथाओं में केवल नामों का ही निर्देश हैं, घटनाओं का निरूपण नहीं । इन सभी कथानों में कथा की मांसलता श्रौर रसमयता प्रायः नहीं है । कृष्ण और कृष्ण की प्राठ पत्नियों की कथा संसार से विरक्ति प्राप्त करने के लिए पूण प्रेरक है । ( भाषा सरल है, पर शैली में कोई आकर्षण नहीं है । हां, कथाओं में बीज भाव ( Germinal idea ) अवश्य हैं, जो प्राकृत कथानों का विकास श्रवगत करने के लिए आवश्यक हैं ।
( अनुत्तरोपपादिक दशा में ऐसे व्यक्तियों की जीवन गाथाएं अंकित हैं, जिन्होंने निर्वाण लाभ तो प्राप्त नहीं किया, पर अपनी साधना के द्वारा अनुत्तर विमान को प्राप्त किया है । इसमें कुल तीन वर्ग हैं, जिनमें क्रमशः दस, तेरह श्रौर दस अध्ययन हैं । तृतीय वर्ग में श्रायी हुई धन्ना की कथा अवश्य घटनापूर है । इसमें उपवास या तपश्चरण करने का महत्व प्रदर्शित हैं । घटनाओं या कथानकों के मात्र व्योरे ही उपलब्ध हैं ।) प्रभावोत्पादक ढंग घटनाओं को घटित होने का अवसर नहीं मिला है ।
fare सूत्र में प्राणियों के द्वारा किये गये अच्छे और बुरे कर्मों का फल दिखलाने के लिए बीस कथाएं भ्रायी हैं । इस ग्रन्थ के प्रथम श्रुतस्कन्ध के दस श्रध्ययनों
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