SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२ माता के साथ मायावी रूप में अनार्य व्यवहार करते हुए दिखलाया । यह व्यवहार उसे सहय नहीं हुआ, फलतः वह उसे पकड़ने को दौड़ा । इस घटना में चुलिनीपिता का शील बहुत ही निखरा है । माता का अपमान और उसके साथ अनार्य व्यवहार कोई भी गृहस्थ सहन नहीं कर सकता है । श्रतः वह माता के अपमानकारी को पकड़ने दौड़ता है । वह उसके दुष्कृत्य का फल चखा देना चाहता है । परिवार के बीच रहने वाला व्यक्ति इस प्रकार के नीच कृत्य का परिशोधन न करे, यह कैसे संभव है । ( कथातत्त्व की दृष्टि से चु लनीपिता का शील संवेदनशीलता की प्राणमयीमूर्छना उत्पन्न करने एवं अनुभूतिमूलक मानव चरित्र की अधिकाधिक भंगिमाओं के उतारचढ़ाव को प्रस्तुत करने में सक्षम है ।) सद्दालपुत्र कथा तर्कमूलक है । भगवान् महावीर ने सद्दालपुत्र के समक्ष तर्क द्वारा नियतिवाद का खण्डन किया है । इस कथा में मानव मनोविज्ञान के श्रादिम सिद्धांत भी विद्यमान हैं । मंखलिपुत्र गोसाल सद्दालपुत्र को प्रसन्न करने के लिए भगवान महावीर की प्रशंसा करता है । उसे इस मानव मनोविज्ञान का पता है कि किसी की प्रिय वस्तु या प्रिय व्यक्ति की प्रशंसा कर देने से वह व्यक्ति प्रसन्न हो जाता है । प्रिय व्यक्ति में व्यक्ति अपनी श्रात्मा का श्रारोपण करता है । दर्शन की चर्चा रहने पर भी कथा प्रवाह में नहीं प्रायी है । ( घटनाएं क्रमबद्ध घटित होती हैं। यद्यपि घटना शैथिल्य विद्यमान है, तो भी तर्कसंगत व्यापारों का नियोजन रहने से वह विशेष खटकता नहीं है । साहित्यिक दृष्टि से रथ का वर्णन बहुत ह सुन्दर और लोकतत्व निकट है । इस कथा में संस्कृति और समाज का अच्छा चित्रण हुआ है । अन्तःकुद्दशा में उन तपस्वी स्त्री-पुरुषों की कथाएं हैं, जिन्होंने (अपने कर्मों का श्रन्त करके मोक्ष प्राप्त किया है। इसमें आठ वर्ग और ε२ उपदेश हैं । ( प्रत्येक उपदेश में किसी न किसी व्यक्ति का नाम अवश्य आता है ये समस्त कथाएं दो भागों में विभक्त हैं । आदि के पांच वर्गों की कथाओं का सम्बन्ध श्ररिष्टनेमि को साथ और शेष तीन वर्गों की कथाओं का सम्बन्ध महावीर तथा श्रेणिक के साथ हैं । - पाठक को महान् आश्चर्य होता है, जब वह राजकीय परिवार के स्त्री-पुरुषों को दीक्षा ग्रहण करते पाता है और सामूहिक रूप में आध्यात्मिक मुक्ति की आवाज बृहत्तर स्तर पर धर्म प्रसारण के लिए सुनता हैं । गजसुकुमार और अर्जुन की कथाएं हचिकर हैं । यद्यपि अधिकांश कथाओं में केवल नामों का ही निर्देश हैं, घटनाओं का निरूपण नहीं । इन सभी कथानों में कथा की मांसलता श्रौर रसमयता प्रायः नहीं है । कृष्ण और कृष्ण की प्राठ पत्नियों की कथा संसार से विरक्ति प्राप्त करने के लिए पूण प्रेरक है । ( भाषा सरल है, पर शैली में कोई आकर्षण नहीं है । हां, कथाओं में बीज भाव ( Germinal idea ) अवश्य हैं, जो प्राकृत कथानों का विकास श्रवगत करने के लिए आवश्यक हैं । ( अनुत्तरोपपादिक दशा में ऐसे व्यक्तियों की जीवन गाथाएं अंकित हैं, जिन्होंने निर्वाण लाभ तो प्राप्त नहीं किया, पर अपनी साधना के द्वारा अनुत्तर विमान को प्राप्त किया है । इसमें कुल तीन वर्ग हैं, जिनमें क्रमशः दस, तेरह श्रौर दस अध्ययन हैं । तृतीय वर्ग में श्रायी हुई धन्ना की कथा अवश्य घटनापूर है । इसमें उपवास या तपश्चरण करने का महत्व प्रदर्शित हैं । घटनाओं या कथानकों के मात्र व्योरे ही उपलब्ध हैं ।) प्रभावोत्पादक ढंग घटनाओं को घटित होने का अवसर नहीं मिला है । fare सूत्र में प्राणियों के द्वारा किये गये अच्छे और बुरे कर्मों का फल दिखलाने के लिए बीस कथाएं भ्रायी हैं । इस ग्रन्थ के प्रथम श्रुतस्कन्ध के दस श्रध्ययनों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy