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(१५) मुख -छवि-स्फेटन - - सखियों द्वारा वधू के घूंघट का हटाना । (१६) परस्पर मुखावलोकन - - वर बधू का परस्पर मुखावलोकन | ( १७ ) उत्तरीय प्रतिबन्धन - - गठजोड़ा ।
(१८) पाणि- ग्रहण |
( १९) बारातियों का स्वागत सत्कार -- सुगन्धि विलेपन, सुगन्धित पुष्प मालाएं, कर्पूर वीट लगे हुए ताम्बूल, वस्त्र और आभूषणों का वितरण ।
( २० ) हवन, धूप, घृत, चीनी आदि पदार्थों द्वारा मंत्र सहित हवन ।
(२१) चार भांवर - - प्रथम भांवर पर दहेज में सौ स्वर्ण कलश, दूसरी पर हार, कुण्डल, करधनी, त्रुटितसार, कंगन, तीसरी पर चांदी के थाल, कप, तस्तरी आदि और चौथी भांवर पर नाना प्रकार के मूल्यवान वस्त्र दिये गये ।
(२२) याचकों को नाना प्रकार का दान ।
विवाह संस्कार का महत्त्व उसके प्रतीकत्व में था। उसकी प्रत्येक क्रिया विवाह के किसी-न-किसी आदर्श, उद्देश्य अथवा कार्य की ओर संकेत करती थी तथा क्रियाएं स्वयं वाहक का कार्य करती थीं । यतः विवाह एक धार्मिक संस्कार था, इसके बहुत से उद्देश्य और कार्य सूक्ष्म भावना और मनोविज्ञान पर अवलम्बित थे । इन सब प्रतीकों की भूत क्रियाओं से निम्न बातों की सूचना मिलती थी :--
(१) विवाहित व्यक्तियों का यह युगल योग्यतम है ।
(२) विवाह सम्बन्ध स्थिर और जीवनपर्यन्त के लिए है ।
(३) लौकिक अभ्युदयों के साथ पारमार्थिक जीवन की उन्नति भी सम्पन्न करनी है ।
(४) द्वादश व्रतों का पालन करते हुए मुनि जीवन की पूर्ण तयारी |
( ५ ) योग्य संतान को गृहस्थी का भार सौंपकर उत्तर जीवन में मुनिपद धारण करना । भृकुटीभंजन क्रिया गृहस्थाश्रम के अनन्तर मुनिपद प्राप्ति का प्रतीक रूप में संकेत करती है ।
बहुविवाह - - हरिभद्र ने अपनी कथाओं में पुरुषों के एकाधिक विवाह होने की बात क स्थानों पर बतायी है । यद्यपि एक पत्नीत्व को इन्होंने आदर्श माना है और व्यवहार में एक ही विवाह की प्रथा थी, किन्तु अपवाद रूप में बहुपत्नीत्व की प्रथा प्रचलित थी । हरिभद्र के पात्रों में राजा तो प्रायः सभी एकाधिक विवाह करते हुए दिखलायी पड़ते हैं । समरादित्य का विवाह भी विभ्रमवती और कामलता नामक दो कन्यायों के साथ हुआ था। सेठ श्रर्हदत्त ने चार विवाह किये थे । २
एक स्त्री के भी एकाधिक पति होते थे । इसका निर्देश हमें हरिभद्र की एक लघुकथा में मिलता है । बताया गया है कि एक स्त्री के दो पति थे। वे दोनों भाई-भाई थे । वह स्त्री उन दोनों को समान रूप से प्यार करती थी। लोगों में यह प्रवाद प्रचलित हो गया था कि संसार में एक ऐसी नारी हैं, जो दो व्यक्तियों को समान रूप से प्यार कर
१ - - विभमवई गयदन्तमई, स० पृ० ०० ।
२ -- वही, पृ० ५८३ ।
३ - पतितुल्लाण परिच्छपेसणा वर पियस्स आइओ | -- उप० गा० ६४, पृ० ६५ ।
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