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________________ कोई उपाय न देखा तो एक जैन साधु के साथ दुराचार की मिथ्या घटना गढ़ी। फलतः सुभद्रा को अपने शील की परीक्षा देनी पड़ी। अतः वर की योग्यताओं में सधर्मी होना भी एक आवश्यक योग्यता थी। हरिभद्र ने वरान्वेषण की प्रथा का भी उल्लेख किया है । शंखपुर के राजा शंखायन ने अपनी कन्या रत्नवती का एक सुन्दर चित्रपट बनवाकर उसके समान रूप सौन्दर्य और कला प्रवीण वर का अन्वेषण कराया था। चित्र और संभूति नाम के व्यक्ति स्थान-स्थान पर उस चित्रपट को लेकर वरान्वेषण के लिए गये थे। विवाह संस्कार--विवाह की पवित्रता और स्थायित्व के लिए संस्कार आवश्यक माना जाता था। हरिभद्र के द्वारा उल्लिखित विवाह संस्कार में निम्न क्रियाएं सम्मिलित है -- (१) वाग्दान--विवाह के लिए वचनदान, इस अवसर पर मंगलवाद्य घोष और - वारांगना नृत्य का प्रचार था। (२) विवाह का शुभ दिन निर्धारण--ज्योतिष के द्वारा विवाह का शुभ दिन निश्चित किया जाता था। (३) यथेच्छित दान की घोषणा--विवाह निश्चित होने पर याचकों को यथेच्छित दान दिया जाता था। (४) वर-वधू का तैलाभ्यंगन--सुगन्धित पदार्थों का लेप, दूर्वार, दधि, अक्षत, आदि मांगलिक पदार्थों द्वारा लाल वस्त्र पहने हुई सधवा युवतियों द्वारा प्रमृक्षण किया। (५) समज्जन--सुवर्ण कलशों द्वारा सुगन्धित जल से स्नान । (६) नखछेदन--नहछू कर्म । (७) पुरोहित द्वारा पुष्पक्षेपण--विवाह के पूर्व सौभाग्यवृद्धि के लिए मांगलिक पुष्पक्षेपण या स्वस्तिवाचन । (८) बधू अलंकरण--महावर, स्तनयुगल पर पत्र लेखन, अधर-रंजित करना, नेत्रांजन, तिलक, केश प्रसाधन, पैरों में नूपुर, अंगुलियों में मुद्रिका, नितम्बों पर मणिमेखला, बाहुमाला, स्तनों पर पद्मराग मणि घटित वस्त्र, मुक्ताहार, कर्णाभूषण और मस्तक पर चूडामणि। पर अलंकरण। ण्डपकरण--मण्डप निर्माण । (११) लग्न निर्धारण--ज्योतिषियों द्वारा समय साधन कर लग्न निर्धारण । (१२) वरयात्रा--बारात का जनवासे से प्रस्थान। (१३) आयारियं--वर का मण्डप में विलासिनियों द्वारा स्वागत। (१४) भृकुटि-भग्न--सुवर्ण मुशल द्वारा रत्नमयी अंगूठियां जिसमें बांधी गयी है, भौंह का स्पर्श--यह प्रथा तोरण स्पर्श की है। १--नाहं मिच्छादिठिस्स धूयं देयि--सासूणणंदाओ पउट्ठाओ भिक्खूणभत्ति णवरे हन्ति--दहा०, पृ० ९३। --स०, प० ७१९।। ३--काऊण य नेहि-स०, पु० ९३--१००। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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