________________
३६६
चाण्डाल, डोम्बलिक, रजक, चर्मकार, शाकुनिक, मत्स्यबन्ध और नापित' जाति के नामोल्लेख मिलते हैं । ये सभी जातियां शूद्र जाति में सम्मिलित थीं ।
३
शबर और भिल्ल जंगल में अपने राज्य बनाकर रहते थे । राज्य का अधिपति पल्लीपति कहलाता था । किसी-किसी पल्लीपति का सम्बन्ध अभिजात्य वर्ग के राजा से भी रहता था और उस राजा के अधीनस्थ रहकर अपने राज्य का संचालन करता था । हरिभद्र के आख्यानों से ऐसा अवगत होता है कि शबर प्रायः लूटपाट किया करते थे 1 जंगल में पूर्ण इनका आधिपत्य रहता था । पल्लीपति शबरों की देखभाल रखता था तथा लूट के माल में भी अधिकांश उसीको हो प्राप्त होता था 1
४
។
चाण्डालों के रहने के लिए "पाणवाड" -- पृथक् चाण्डाल निवास रहते थे । इनका कार्य लोगों को फांसी देना, प्राण लेना तथा अन्य इसी प्रकार के क्रूर कर्म करना था ।
रजक को वस्त्र शोधक भी कहा है, यतः वस्त्र साफ करने का कार्य रजक करते थे । नापित अपने कार्य के अतिरिक्त राजा को पाखाना कराने का कार्य भी करते थे ।
सार्थवाह एक व्यापारिक जाति थी, जो व्यापार द्वारा देश के एक कोने से दूसरे कोने तक धनार्जन का कार्य करती थी । विद्याधर जाति मंत्रसिद्धि द्वारा अनेक प्रकार को अद्भुत और आश्चर्यजनक शक्तियों से सम्पन्न थी 1
परिवार गठन
परिवार एक आधारभूत सामाजिक समूह है । इसके कार्यों का विस्तृत स्वरूप विभिन्न समाजों में विभिन्न होता है, फिर भी इसके मूलभूत कार्य सब जगह समान ही हैं। काम की स्वाभाविक वृत्ति को लक्ष्य में रखकर यह यौन सम्बन्ध और सन्तानोत्पत्ति की क्रियाओं को नियमित करता है । यह भावनात्मक घनिष्ठता का वातावरण तैयार करता है, तथा बालक समुचित पोषण और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक पृष्ठभूमि देता है । इस प्रकार एक व्यक्ति के समाजीकरण और सांस्कृतिकरण की प्रक्रिया में परिवार का महत्वपूर्ण भाग होता है । इन आधारभूत कार्यों के अतिरिक्त इसका निश्चित आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक तथा सांस्कृतिक महत्त्व भी है। परिवार के निम्न कार्य प्रमुख हैं-
(१) स्त्री-पुरुष के यौन सम्बन्ध को विहित और नियंत्रित करना ।
(२) वंशवर्धन के निमित्त सन्तान की उत्पत्ति, संरक्षण और पालन करना । (३) गृह और गार्हस्थ्य में स्त्री-पुरुष का सहवास और नियोजन |
(४) जीवन को सहयोग और सहकारिता के आधार पर सुखी और समृद्ध
बनाना ।
(५) ऐहिक उन्नति के साथ पारलौकिक या आध्यात्मिक उन्नति करना ।
(६) जातीय जीवन के सातत्य को दृढ़ रखते हुए धर्म कार्य सम्पन्न करना ।
- स०, पृ० ९०५ ।
२- वही, पृ० ३४८ ।
३ - - कालसेणो नाम पल्लीवई, वही, पृ० ५०४ ।
४-
- वही, प० ५२९-३०।
५- वही, पृ० ५२३ ।
६ --- ऊसइनो नाम वत्थसोहगो, वही, पृ० ५१ ।
७ - वही, पृ० ४५० -४५२ ।
--२२ एड०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org