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धारण की थी। राजकुमारी चन्दनवाला के कारण इस नगरी का महत्त्व जैनागम में अधिक बतलाया गया है । विविधतीर्थ कल्प में इस नगरी की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि इस नगरी में पद्मप्रभु स्वामी का गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान ये चार कल्याणक हुए हैं । अतः यह अत्यन्त पवित्र है। वर्तमान में यह स्थान इलाहाबाद जिला का कोसम है।
(१३) गजपुर -यह हस्तिनापुर का दूसरा नाम है । विविध तीर्थकल्प में भागीरथी-सलिलसंगपवित्रमतंजीयाच्चिरं गजपुरं भुवितीर्थरलं (पृ. ६४) कहकर प्रशंसा की
(१४) गज्जनक'-यह मरदेश में सत्यपुर के निकट अवस्थित था। विविध तीर्थकल्प के अन्तर्गत सत्युपुर तीर्थ कल्प में गज्जनक का (पृ० २६) निर्देश उपलब्ध है। अाजकल मारवाड़ में गुज्जर या गज्जा नाम का एक गांव है, जो प्राचीन गज्जनक कहा जा सकता है।
(१५) गन्धसमृद्ध-वैताढ्य पर्वत पर इसे विद्याधर नगर कहा है। वर्तमान भूगोल के अनुसार इसकी स्थिति मालवा में रही होगी।
(१६) गिरिस्थल --यह गिरिनगर का दूसरा नाम है। गुजरात के प्रसिद्ध पर्वत गिरिनार के पास-पास का प्रदेश इसमें शामिल था। गिरिनार पवत को पुराणों में रैवतक और ऊर्जयन्त कहा गया है। विविध तीर्थकल्प में "सुरद्वाविसए रेवयपव्वयरामसिहरे" (पृ. ६) अर्थात् सौराष्ट्र देश में रैवतक पर्वत के शिखर पर नेमिनाथ का मन्दिर था, बताया गया है । महाकवि माध ने अपने महाकाव्य शिशुपालवध में श्रीकृष्ण की सेना का द्वारिका से चलकर रेवतक पर्वत पर शिविर डालने के अतिरिक्त विविध क्रीड़ानों का वर्णन किया है। श्री प्रापटे ने दक्षिणापथ के एक जिले का नाम गिरिनगर या गिरिस्थल बताया है । राजशेखर ने काव्यमीमांसा में इसे पश्चिमी भारत का एक प्रदेश माना है।
(१७) चक्रपुर --हरिभद्र ने "प्रवरविदेहे खेत्ते चक्कउरं नाम पुरवरं रम्म" लिखकर इसकी स्थिति का परिचय दिया है । उसके अनुसार यह रम्य नगर अपर विदेह क्षेत्र में स्थित था। अाजकल इसकी स्थिति उड़ीसा में चक्रपुर के रूप में मानी जा सकती है ।
(१८) चक्रवालपुर---यह भी हरिभद्र के अनुसार विजया का चवालपुर विद्याधर नगर है । हमारा अनुमान है कि यह वर्तमान में उत्तर प्रदेश में कहीं स्थित है ।
(१६) चम्पा नगरी - यह अंगदेश की प्रधान नगरी थी, इसका दूसरा नाम मालिनी था। जैन साहित्य में चम्पा को बहुत पवित्र और पूज्य नगरी माना गया है । स्थानांग (पृ० १०, ७१७) तथा निशीथसूत्र (६, १९) में जिन दस राजधानियों के नाम प्राये
१- सा० कोसंबीनयरी जिणजम्मपवित्तिमा महातित्थ वि० ती० क० पृ० २३ । २ -स० पृ० ६१८ । ३-वही, पृ० २१७ । ४ . वही, पृ० ४११ । ५-वही, पृ० २७०। ६--देवसभायाःपरतः पश्चाद्देश:-का० मी० पृ० २२७ । ७- स० पृ० ८०३ । ८--वही, पृ० ११० । ६- वही, पृ० १३०, ६०५ ।
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