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( ५ ) उज्जयिनी ' - - प्रसिद्ध वर्तमान उज्जैन का प्राचीन नाम है । यह नगरी अवन्ति देश या मालवा की प्रसिद्ध राजधानी थी । यह नगरी शिप्रा नदी के तट पर अवस्थित है । इस नगरी के अन्य नाम कुणालनगर, विशाख और पुष्पकरण्डिनी भी प्राते हैं । कुणाल के पुत्र सम्प्रति का उज्जयिनी नरेश के रूप में उल्लेख जंनग्रन्थों में उपलब्ध है । उज्जयिनी नगरी जैन और बौद्धधर्म का प्रसिद्ध केन्द्र रही है । यहां की मिट्टी काली होने के कारण बुद्ध ने भिक्षुत्रों को जूता पहनने और स्नान करने की भी प्राज्ञा दी थी । यह नगरी व्यापार का भी बहुत बड़ा केन्द्र रही थी । हरिभद्र ने इसकी समृद्धि का वर्णन करते हुए लिखा है कि इसमें त्रिक, चातुष्क और चत्वर मार्ग थे । इसके बाजार माणिक्य, मोती, सुवर्ण और धान्य से सदा सजे रहते थे । यह परिखा और जलाशय से सुशोभित और स्वर्ण खण्ड के समान मनोरम थी ।
(६) काकन्दी - विविध तीर्थकल्प में काकन्दी का उल्लेख प्रत्यन्त पवित्र नगरी के रूप में किया गया है । यह नगरी बिहार में वर्तमान है ।
(७) काम्पिल्य' - काम्पिल्यपुर दक्षिण पांचाल की राजधानी रहा है । यह गंगा के किनारे बसा है । वर्तमान में फरुखाबाद जिले में यह नगर कपिला कहा जाता है । विविध तीर्थकल्प में - "पंचाला नाम जणवप्रो । तत्थ गंगानाम महानई तरंगंभ पक्खालिज्जमाणपामारभित्तिनं कंपिलपुरं नाम नगरं 1 अर्थात् गंगा के किनारे पर बताया है । इस नगरी में तेरहवें तीर्थ कर विमलनाथ का जन्म हुआ था । यह भी अत्यन्त पवित्र नगरियों में सम्मिलित है ।
(८) कुसुमपुर ' 1 - यह पटना का प्राचीन नाम है । विविध तीर्थकल्प में कुसुमों की बहुलता होने से इसके कुसुमपुर होने का कारण कहा है ।
(६) कृतांगला इसका अस्तित्व भी विजय क्षेत्र में ग्रन्थकार ने माना है । यह नगरी वर्तमान सौराष्ट्र में है ।
(१०) कोल्लाक सन्निवेश -- प्राचीन मगध में इसकी स्थिति हैं । विविध तीर्थकल्प से ज्ञात होता है कि यह मगध का प्रसिद्ध ग्राम है । इसमें वित्त और सुधर्म स्वामी जन्म ग्रहण किया है । यह राजगिर के पास कहीं रहा होगा ।
(११) कोसलपुर -- श्रवध राज्य का दक्षिणी भाग । इसकी राजधानी कुशावती थी । रामायण के अनुसार राम ने कुशावती का राज्य कुश को दिया था । इसका प्राचीन नाम ऋतु पर्ण भी मिलता है ।
(१२) कौशाम्बी यह वत्स अथवा वंश देश की राजधानी थी, और यमुना नदी के किनारे पर बसी थी । जैन साहित्य में बताया गया है कि वत्साधिपति उदयन की मां मृगावती महावीर की परम उपासिका थी और उसने महावीर के पास जैन दीक्षा
१ - ०, पृ० ५०१ ।
२ -- वही, पृ० ३६३ । ३ - वही, पृ० ४७
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४- वि० ती० क० पृ० ५० ।
५- स० पृ० २४३ ।
६ -- वही, पृ०
१७३ ।
७- वही, पृ० २७६, ७२७, ८४६ ॥
८- वि० ती० क० पृ०
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-- सं० पृ० ६१८ |
१०- स० पृ० ३५३, ५७८ ।
ε.
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