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________________ ३५३ नागवल्ली, प्रियंगु मंजरी, चन्दनलता', एलालता और मालती ' लताओं' के नाम श्राये हैं । हरिभद्र ने वृक्ष और लतानों के साथ, दूर्वा, काश और कुशका भी निर्देश किया है । जंगली जड़ी-बूटियों के नाम भी बतलाये हैं । ० हैं । पशु -- जंगली पशुओं में वनकोल, शरभ, पसय, व्याघ्र, तरच्छा अच्छभल्ल, जम्बूक, गवय, rush, श्राश्वापद, वनमहिष ( १३५ पृ० सं० ), मृग, शार्दूल ( ५१० पृ० सं०) सिंह ( ५१६ सं०), कुन्त (स० पृ० ५३०), श्रृंगाल (स० पृ० ४६८ ) और वनगज ( पृ० ४६९ ) उल्लेख उपलब्ध हैं। सरीसृप में सर्प और अजगर ( पृ० ४४४) के नाम श्रार्य पक्षियों में गृध ( ५३०), वायस ( २६०), कुन्त (५३०), के नाम निर्दिष्ट हैं । (१) राजनं तिक भूगोल के अन्तर्गत देश और नगर शामिल हैं। हरिभद्र ने प्रवन्ती उत्तरापथ, काशी, सौराष्ट्र आदि देशों का वर्णन किया है । नगरों के नाम और वर्णन निम्न प्रकार उपलब्ध होते हैं । (अ) जनपद * अवन्ती --- वर्तमान मालवा का वह भाग, जिसकी राजधानी उज्जयिनी थी और जिसे विक्रमादित्य की राजधानी भी कहा जाता है । मत्स्यपुराण में इसका नाम वीतिहोत्र कहा गया है । बाणभट्ट ने वेत्रवती या वेतवा नदी के तटपर स्थित विदिशा नगरी को अवन्ती देश की राजधानी माना है । महाभारत में नर्मदा के दक्षिण तट पर इसका अस्तित्व माना गया है, जो महानदी के पश्चिम तट पर हैं । मत्स्यपुराण के अनुसार कार्तवीर्यार्जुन के कुल में प्रवन्ति नामक राजकुमार उत्पन्न हुआ था, उसीके नाम पर इस देश का नामकरण भी हुआ । उत्तरापथ - पृथूदक का उत्तरी भाग उत्तरापथ कहलाता है । पृथूदक का वर्त्तमान नाम पिहोवा है, जो सरस्वती नदी के तट पर स्थित है । पिहोवा पूर्व पंजाब का एक जिला था, जो थानेश्वर से ४४ मील पश्चिम की ओर है । कलिंग कलिंग देश उत्तर में उड़ीसा से लेकर दक्षिण में श्रान्ध्र या गोदावरी के मुहान तथा समुद्र तट पर फैला हुआ है । राजशेखर ने काव्यमीमांसा में दक्षिण और पूर्व के सम्मिलित प्रदेश को कलिंग माना है । प्राचीन शिलालेखों में त्रिकलिंग का पाठ मिलता है । इसकी राजधानी का नाम दन्तकूर कहा गया है । कामरूप :- वर्तमान असम या आसाम प्रदेश । राजशेखर ने भारत के पूर्वी भाग के एक पर्वत को कामरूप नाम से लिखा है । कामरूप की राजधानी प्रागज्योतिषपुर थी । महाभारत के समय इसका राजा भगदत्त था और हर्षवर्धन के समय मित्र भास्करवर्मा यहां का शासक था । ह, वेनत्सांग और अलबेरुनी के लेखों से पता चलता है कि १ स० प० ८८ । २ - वही, पृ० ४२४ । ३ - वही, पृ० ३७८ । ४ - वही, पृ० ४२४ । ५- वही, पृ० २४ । ६ - वही, पृ० १४८ ॥ ७ - वही, पृ० २७७ । ८वही, पृ० ३१८ । ६ - वही, पृ० ८०४ । २३-२२ एड० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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