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निचुल, 'अंकोल, ' कुंजल, ' पलास, शाल्लीकी,५ तिनिश, ६ कुटज,' खदिर, अर्जुन', सिन्दवार", पुत्रजीवक, अंकोठ १२और कांचनपादप १२ का उल्लेख हरिभद्र ने किया है । न्हें अशोक तो इतना प्रिय है कि उसका अस्तित्व सभी बन-उपवनों में बताया है। ___पुष्पपादप और लताओं का निर्देश भी हरिभद्र का महत्वपूर्ण है। वनस्पति श स्त्रियों ने पुष्प-पादपों की १६० उपजातियां बतायी हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध कुमुदिनी और कमल है, जिनके अनेक प्रकार पाये जाते हैं। कुमुदिनी रात्रि में और कमल दिन में खिलता है । हरिभद्र ने उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक और अन्योक्तियों में इन दोनों पुष्पों का प्रचुर परिणाम में उपयोग किया है। चम्पा, " पुन्नाग, ५ नाग, १६ नलिनी, १७ कुंकुम-केशर,१८ मल्लिका, सप्तच्छद", कुन्द, लवंग, पाटल २३ और चन्दन ४ का उल्लेख हरिभद्र ने किया है। लताओं में विद्रुमलता, द्राक्षालता, माधवीलता",
१--स० पृ०१३५ । २--वही ३--वही ४--वहीं ५-वही .६-वही ७--वही ८--वही 8--वही १०--वही, पृ० ३७८ । ११--वही, पृ० ४११। १२--वही, पृ० ६३७ । १३--वही, पृ० ८२३ । १४--वही, पृ० ११३ १५--वही १६--वही १७--वही, पृ० ८८. १८--वही १६---वही, पृ० ३७८ । २०--वही २१--वही, २२--वही, पृ० ५४७ । २३--वही, पृ० ६४० । २४--वही, पृ० ५१० । २५--वही, पृ० ७६ । २६--वही, पृ० ८७ । २७--वही, पृ० ८८ ।
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