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(अ) द्वीप और क्षेत्र
हरिभद्र की कथाओं में जम्बूद्वीप, सुवर्णद्वीप, सिंहलद्वीप, चीनद्वीप और महाकटाह द्वीपों के नाम आते हैं ।
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जम्बूद्वीप' -- मध्यलोक में असंख्यात द्वीप- समुद्रों में बीच का द्वीप एक लाख महायोजन व्यास वाला गोलवलय के आकार का है । इसके चारों श्रोर लवणसमुद्र और मध्य में मेरु पर्वत है । इसमें भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, है रण्यवत और ऐरावत सात क्षेत्र हैं। इसमें पूर्व से पश्चिम तक लम्बे हिमवत, महाहिमवत, निषेध, नील, रुक्म और शिखरिन ये छः कुलाचल पर्वत हैं ।
सुवर्णद्वीप'. -- प्राजकल इसे सुमात्रा कहा जाता है । मलय उपद्वीप और चीन सागर को भारत महासमुद्र से पृथक रखकर सुमात्रा येनंग की एक समानान्तर रेखा से प्रारम्भ वण्टम की समान्तराल रेखा तक विस्तृत है । इसकी लम्बाई ६२५ मील और चौड़ाई ६० मील हैं । यहां के अधिकांश निवासी मलय वंशीय है । आठवीं शती के पूर्व यहां श्रमण धर्म का भी प्रचार था । इस भूखण्ड को रामायण में भी सुवर्णद्वीप कहा गया है, पर ब्रह्माण्ड पुराण में इसका नाम मलयद्वीप श्राया है ।
सिंहलद्वीप -- सिंहल नाम का टापू भारत के दक्षिण में हैं । यह द्वीप कोणाकार और सूची मुखाग्र उत्तर की ओर लम्बित है । समूचे द्वीप की परिधि ६०० मील के लगभग है । सिंहल के समद्र तट का प्राकृतिक दृश्य बड़ा ही मनोरम है । उत्तरपश्चिम उपकुलदेश चौरबालू और जलगर्भस्थ शैलमाला से समाच्छन्न है । रामेश्वर और सेतुबन्ध नामक पर्वत जात द्वीप और जलगर्भस्थ शैलमाला द्वारा यह भारतवर्ष के साथ मिला हुआ है । भारत और सिंहल के मध्य इस प्रकार के शैल और द्वीप श्रेणी रहने पर भी उसके भीतर से पोतादि ले जाने के लिए पथ है ।
महाभारत में आया है कि सिंहलराज नानामणि रत्न लेकर युधिष्ठिर के राजसूर्य यज्ञ में श्राया था । राजतरंगिणी में सिंहल का वर्णन है । टर्नर ने महावंश के अंग्रेजी अनुवाद में सिंहल के राजवंश का विस्तृत वर्णन किया है ।
चीन द्वीप -- यह वर्तमान पूर्व एशिया का मध्यवर्ती सुविख्यात देश है । इस विस्तीर्ण राज्य के पूर्व चीन सागर एवं पीत सागर, दक्षिण-पूर्व उपद्वीप, पश्चिम तिब्बत, पूर्व तुर्कस्थान और उत्तर सुप्रसिद्ध वृहत् प्राचीर हैं । चीन का दर्ध्य उत्तर-दक्षिण में १,८६० मील और आयाम पूर्व-पश्चिम में १.२२० मील है । वृहत् संहिता के कर्म विभाग में ईशान कोण में इस देश का उल्लेख हैं ।
१ - - प्रत्थि इहेव जम्बुद्दीवे दीवे, अपरविदे हे वासे- - भग० सं० स० पृ० ६ समराइच्च कहा प्रत्येक भव में जम्बूद्वीप का नाम आया है ।
२ - - त्रि० स० गा० ६६१ ।
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३ - - सुवण्णदीवंमि लग्गो-- 1 स० पृ० ५४०
४-
- हिन्दी वि० सुवर्ण द्वीप शब्द |
५ - - सीहलदीवगामिवहणोवलम्भ, स० पृ० ३६६, ४२० ।
६ -- महाभारत का सभा पर्व ३४ / १२ और ५२ / ३५-३६।
७--- राजतरंगिणी १ २६५ ।
८-.
-- विमुक्कं जाणवन्तं गम्मए चीणदीवंति - भग सं० स० पृ० ५४०, ५४२ । E--- चीन कौणिन्दा --- वाराही संहिता प्र० १४, श्लो० ३० ।
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