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सुरक्षित रखा है । मानसिक भाव भूमि के धरातल पर मानव जाति की विभिन्न परम्पराओं के मूलरूप को सुरक्षित रखने में हरिभद्र अद्वितीय है। लोक जीवन के प्रादर्श और जनविश्वासों की परम्परा अक्षुण्ण रूप से सुरक्षित है।
संक्षेप में शैली, घटना-चमत्कार एवं अभिव्यक्ति में हरिभद्र की प्राकृत कथाएं, लोककथाओं के निकट है। यद्यपि अभिजात कथाओं के गुणधर्म इनमें बहुलता से पाये जाते हैं, तो भी लोककथा तत्वों की कमी नहीं है ।
२--कथानक रूढियाँ
लोक-कथा का अभिन्न अंग कथानक रूढ़ि है। कथा-साहित्य के विश्लेषण के लिए कथानक रूढ़ियों को जान लेना आवश्यक है। बात यह है कि विभिन्न कथा-कहानियों में बार-बार व्यवहृत होने वाली एक जैसी घटनाओं अथवा एक जैसे विचारों को कथानक रूढ़ि की संज्ञा दी जाती है। उक्त प्रकार की घटनाएं या विचार सम्बद्ध कथानक के निर्माण अथवा उसके विकास में योग देते हैं और कथाकाव्यों में उनके उपयोग की एक सदीर्घ परम्परा होती है। उदाहरणार्थ किसी कथानायक का समद्रयात्रा करना, यात्रा के बीच में तूफान आना और उसके जहाज का टूटना एक घटना हो सकती है, किन्तु यही घटना अनेक कथाओं में विभिन्न उद्देश्यों को पूत्ति के निमित्त एकाधिक बार प्रयुक्त होकर एक लोकप्रिय कथानक रूढ़ि बन गयी है। ___ कथानक रूढ़ि शब्द अंग्रेजी के "फिक्सनमोटिव" का पर्याय है। हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान् प्राचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उक्त शब्द को स्पष्ट करते हुए लिखा है--"हमारे देश के साहित्य में कथानक को गति और घुमाव देने के लिए कुछ ऐसे 'अभिप्राय' बहुत दीर्घकाल से व्यवहृत होते आये हैं, जो बहुत दूर तक यथार्थ होते हैं और जो आगे चलकर कथानक रुढ़ि में बदल गये है। यथार्थ बात यह है कि कथा साहित्य की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का विश्लेषण कथा साहित्य के सर्वप्रिय अभिप्राय-मोटिव्स के परिज्ञान के बिना संभव नहीं है। भाइयों में सबसे छोटा भाई और रानियों में सबसे बड़ी रानी ही कथाकार को क्यों प्रिय है ? बड़े भाई प्रारम्भ में छोटे भाई का अनादर करते हैं और उसकी योजनाओं पर हंसते है, किन्तु विजय अन्त में उसीकी ही होती है। कथा के पूर्ण होने पर उसे राजपाट प्राप्त होता है तथा उसका सुन्दरी राजकुमारी के साथ विवाह हो जाता है । पाठक या श्रोताओं को इस राजकुमार के साथ पूर्ण सहानु
ती है। उसपर तनिक भी कष्ट आता है तो पाठक का मन दहल जाता है। इसी प्रकार कथाकार किसी राजा की छोटी रानी को सर्वाधिक सुन्दरी बताता है, पर साथ ही उसे क्रूर और कुटिल भी। वासनाप्रिय राजा उसके विषाक्त मोहपाश में आबद्ध होकर अन्य रानियों के साथ दुर्व्यवहार करता है, किन्तु अन्त में उसे अपने किये पर पश्चात्ताप होता है। वह बड़ी रानी की महत्ता समझता है, उसका आदर करता है और छोटी रानी को दण्ड देता है। उक्त घटनाएं प्रारम्भ में मात्र कथानक का अंग रही होंगी, पर बार-बार प्रयुक्त होते-होते ये कथानक रुढ़ि या मोटिव्स बन गयी है।"
सुसंस्कृत कवियों द्वारा ग्रहण की गयीं, जिन रूढ़ियों को "कविसमय" कहा गया है, वे वस्तुतः भारतीय साहित्य की काव्य रुढ़ियां ही हैं। इसी प्रकार मूत्ति, चित्र और संगीत कलाओं को भी अपनी विभिन्न रूढ़ियां होती है। काव्य रचयिता इनका उपयोग निरन्तर करते रहते हैं। लोककलाओं में रेखांकन और रूपावतरण की विभिन्न पद्धति
१--हिन्दी साहित्य का आदिकाल, पृ०७४ ।
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