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२५१ और प्रात्मा परमानन्द से प्रापूरित हो जाती है। हरिभा में अपनी प्रात कपात्रों में बर्ममता पर बड़ा जोर दिया है। जन्म-जन्मान्तर के संस्कारों का परिमार्जन इसी भता के द्वारा होता है। अहिंसा, सत्य, प्रचौर्य, ब्रह्मवर्ष और अपरिग्रह रूप धर्म की भता ही व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति उत्पन्न करती है। (६) आदिम मानस (प्रिमीटिव माइन्ड)--
प्रादिम मानव प्राकृतिक विभूतियों को देखकर प्रभावित हुना होगा। उसने सूर्य, चन्द्र, प्राकाश, पृथ्वी, अग्नि आदि से चमत्कृत होकर इन्हें अपना आराध्य या शक्तिमान सहायक समझा होगा। पेड़, पौधे, नदी, पहाड़, समुद्र प्रभृति को भी उसने श्रद्धा से देखा होगा । हरिभद्र ने अपनी कथानों में प्रलय, सृष्टि की उत्पत्ति, स्वर्ग, नरक, विशेष प्रथा प्रादि का निरूपण मादिम विश्वासों के अनुसार किया है । समुन्द्र यात्रा करते व्यापारी लोग समुद्र को देवता मानकर पूजते थे। धरण जैसा विचारक भी इस मादिम विश्वास से मुक्त नहीं है। वह भी समुद्र के किनारे जाकर समुद्र की पूजा करता है, उसे अर्ध्य देता है और जब यानपात्र पर प्रारुढ़ होता है तो देवगुरु की वन्दना करता है। इस प्रकार के विश्वास मनुष्य के प्राचीन काल से ही चले पा रहे है। इसी प्रकार रोग या विपत्ति को दूर करने के लिए, शान्ति-अनुष्ठानों का किया जाना मादिम विश्वास का फल है। अनादि काल से मनुष्य इस प्रकार की बातों पर विश्वास करता चला आ रहा है। जब राजा गुणसेन बीमार हो जाता है, उसकी शिरोवेदना उसे अपार कष्ट देती है, तो मंत्रिमंडल शान्ति-अनुष्ठान की योजना करता है । हरिभद्र मणि, मंत्र, तंत्र, विद्या प्रादि के चमत्कारों को अभिव्यक्त करते हैं।
(७) रहस्य--
. लोककथाओं का एक तस्व रहस्यों का उद्घाटन करना भी है। रहस्य से तात्पर्य है गूढ़, छिपी, तत्त्वपूर्ण एवं तन्त्र-मंत्र की उन शक्तियों से जिनमें गोपनीयता बहुत दूर तक प्रविष्ट रहती है। अभिप्राय यह है कि जिन बातों की जानकारी साधारण व्यक्तियों को नहीं हो और न जिनका ज्ञान इन्द्रिय प्रत्यक्ष के द्वारा ही संभव हो, उन्हें रहस्य कहा जाता है। हरिभद्र ने अपनी कथाओं में पूर्वजन्मों की कितनी ही गोपनीय शृंखलाओं का उद्घाटन किया है। नारिकेल वृक्ष की जड़ पर्वत का उद्भेदन करती हुई नीचे तक क्यों पहुंच गयी है ? इस रहस्य का उद्घाटन तृतीय भव की कथा में अजितदेव तीर्थकर के द्वारा अजितसेन की कथा में कराया गया है । इस कथा को कहने वाला प्राचार्य विजय सिंह है। नारियल की जड साधारण नहीं है। इसके पीछे अनेक जन्मों का इतिहास छिपा है। दो जीवों की एकांगी शत्रुता कितने भवों या जन्मों तक चलती जाती है और वे अपनी सत्-असत् प्रवृत्तियों के कारण किस प्रकार संसार परिभ्रमण करते है, यह इस अवान्तर कथा से सहज में जाना जा सकता
लौकिकता से विमुख होकर जब किसी अज्ञात, रहस्यमय अलौकिक शक्ति के प्रति राग, उत्सुकता विस्मय, जिज्ञासा या लालसा उत्पन्न होती है, तब रहस्योद्घाटन की स्थिति आती है । सृष्टि का रहस्य, मानव का रहस्य, प्राध्यात्मिकता का रहस्य एवं प्रकृति का रहस्य हरिभद्र की प्राकृत कथाओं में उद्घाटित किया गया है। घटनाओं के माध्यम से रहस्य का विश्लेषण रहने से कथाएं भी सरस और हृदयग्राही बन गयी है।
१--स०, प.० ५४०१
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