________________
२००
सम
हरिभद्र के नारिकेल वृक्ष के समान कथा-सरित्सागर के चतुर्थ लम्बक में एक विशाल वटवृक्ष का वर्णन आया है। इस वृक्ष की जड़ों में धननिधि के रहने की बात कही गयी है। संभवतः गुणाढ्य ने उक्त वृक्ष को नारिकेल ही माना होगा अथवा यह भी संभव है बहत्कथा का वटवक्ष समराहच्चकहा में नारिकेल बन गया हो। अतः यह सत्य है कि हरिभद्र ने गुणाढ्य की बृहत्कथा से भी कुछ स्रोत अवश्य ग्रहण किये हैं।
समराइच्चकहा के कुछ कथानक, सन्दर्भ कल्पनाओं का स्रोत मृच्छकटिक प्रकरण में पाया जाता है । यद्यपि मृच्छकटिक का रचनाकाल अनिश्चित है। यदि यह समराइच्चकहा का पूर्ववर्ती है तो हरिभद्र सूरिने अवश्य कथानक स्रोत ग्रहण किये हैं। उत्तरवर्ती होने पर
हिच्चकहा से ही स्रोत ग्रहण किये होंगे। समराहच्चकहा के चतर्थ भव में आया है कि कुसुमपुर निवासी महेश्वरदत्त जुए में सोलह सुवर्ण मुद्राएं हार गया था। उसके साथी इस धन को प्राप्त करने के लिये उसे खदेड़ते हुए चले आ रहे थे। महेश्वरदत्त ने धनसार्थवाह को देखा और दीनतापूर्वक कहने लगा--"मैं आपकी शरण में हूं। सोलह सुवर्ण सिक्के न दे सकने के कारण ये लोग मुझे बहुत कष्ट दे रहे है"। में धनाभाव के कारण इस ऋण को दन में असमर्थ हैं। अब आप ही प्रमाण है। मह श्वर के उक्त वचनों को सुनकर धनसार्थवाह ने सोलह सुवर्ण सिक्के देकर उसे ऋणमुक्त किया। महेश्वर ने कापालिक मत स्वीकार कर प्रवृज्या ग्रहण की । ___ जलयान के भंग होने पर धन एक काष्ठफलक के सहारे समुद्र तट पर पहुंचता है। यहां इसका साक्षात्कार महेश्वर कापालिक से होता है। महेश्वर अपने उपकारी को
। कर उसका स्वागत-सत्कार करता है तथा उसे गारुड मन्त्र और तिलोकसार रत्नावली हार देता है। धन चलता हुआ श्रावस्ती में आता है और यहां के राजा विचार धवल के भाण्डार से बहुमूल्य वस्तुओं की चोरी किसी ने कर ली है। नगर में चारों ओर तलाशियां ली जा रही है। धन की भी तलाशी ली जाती है। त्रिलोकसार रत्नावली हार राजदुहिता का था, जो कि सिंहल द्वीप को गयी थी। राजा को विश्वास हो जाता है कि धन ने राजकुमारी की हत्या कर रत्नावली हार को प्राप्त किया है। अतः राजा उसे प्राणदंड की सजा देता है। खांगलिक चाण्डाल उसके गले में करवीर माला पहनाकर बध स्थान--श्मशान भूमि की ओर ले जाता है । श्मशान भूमि में उसके अपराध की घोषणा करता हुआ तथा लोगों को इस प्रकार के अपराध न करने की चेतावनी देता हुआ खांगलिक तलवार का प्रहार करता है, किंत तलवार उसके हाथ से छूटकर गिर जाती है और खांगलिक भी भूमि में गिरकर सोचने लगता है ।
उपर्युक्त दोनों कथानक मृच्छकटिक नाटक में कुछ ही रूपान्तर के साथ उपलब्ध है। इस प्रकरण के द्वितीय अंक के द्वितीय दृश्य में बताया है कि जुए में हारा हुआ सं हिक किसी शून्य देवालय में शरण लेता है। माथुर और द्यूतकार उसे खोजते हुए वहां पहुंचते हैं। वे उस स्थान को निर्जन देखकर वहीं जुआ खेलने लगते हैं। संव हक उन्हें खेलते देख अपनी प्रवृत्ति को रोकने में असमर्थ होता है। वह भी उनसे मिल जाता है। माथर और धतकार उसे देखते ही पकड कर बाहर ले जाते हैं। वे उससे अपना ऋण' मांगते हैं और न देने पर उसे मारते है। इसी बीच दर्दुरक वहां
१--वि० रा० प्र० कथा, प्र० खं० पृ० ४७१ । २--सम० पृ० २४३-२४४ । ३- सम० पृ० २५४-२५५ । ४--वही पृ. २६२।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org