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स कथा के प्रारम्भ का ही कार्य विकास एक विनोदपूर्ण उलझन तथा समस्या सं युक्त हैं और नाटकीय संघर्ष की दिशा में अग्रसर होता हूँ । देवनन्दी और धरण नगर को मुख्य द्वार पर थोथे श्रहं की पूर्ति के लिये अपने रथों को श्रामने -सामने कर याता"यात को अवरुद्ध कर अड़ जाते हैं। नगर -- राज्य के निर्णय पर दोनों सम्पत्ति श्रर्जन करने निकलते हैं । इस नाटकीय सन्दर्भ द्वारा कथाकार को धरण के कर्म-उत्साह और चारित्रिक समारोह को प्रदर्शित करने का उपयुक्त अवसर मिल जाता है । धरण पल्लीपति को औषधि प्रयोग द्वारा जीवन दान देता है । पल्लीपति स्वस्थ होकर कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहता है -- " अज्ज मा तुह सा श्रवत्था हवउ, जीए मए चिय पत्रोयण" अर्थात् आर्य ! आपके ऊपर कभी ऐसी आपत्ति न आवे, जिससे आपको मेरी आवश्यकता प्रतीत हो । कुमार उत्तरापथ की ओर आगे बढ़ता है और उसे चोरी के अपराध में बन्दी बना लेते हुए महाशर निवासी मौर्य चाण्डाल से साक्षात्कार होता हैं । मौर्य अपने को निरपराधी बतलाता हुआ उसकी शरण में आता है । कुमार उसे शरण प्रदान करता है और उसे बन्धन मुक्त कराता है । ये सभी घटनाएं कुमार धरण के चरित्र को बहुत ऊंचा उठा देती हैं । इन कार्यों से उसके महान् गुणों के प्रति श्रद्धा और आदरभाव उत्पन्न हो जाता । कुमार की अन्तर्मुखी वैराग्य की प्रवृत्ति सदा जाग्रत है । सत्य और अहिंसा उसके जीवन में हर क्षण वर्त्तमान हैं । वह पल्लीपति को आजीवन दया पालने का नियम' देता है ।
इस जन्म की पत्नी लक्ष्मी, जिसकी नायक के साथ जन्म-जन्मान्तरों की शत्रुता है, अवसर आने पर अपनी विरोधी शक्ति का प्रदर्शन करती है । धरण के जीवन में लक्ष्मी का विरोध अन्य भवों के विरोध की अपेक्षा भिन्न है । इसमें देवी शक्ति या चमत्कार को प्रालम्बन के रूप में स्वीकार नहीं किया है । शुद्ध मानवीय रूप से ही विरोध का प्रारम्भ होता है । इस विरोध के बीच उसके कर्त्तव्य, प्रेम, मानवता, प्रास्था, अन्तर्द्वन्द्व आदि चारित्रिक पहलुओं का विकास दिखलाने में कथाकार को श्राधुनिक कथा की सफलता प्राप्त हुई है । जीवन में घात-प्रतिघातों का औपन्यासिक रूचि के साथ चित्रण इस भव की कथा की महत्वपूर्ण उपलब्धि और देन है । चरित्रों में प्रतिमानवीयता की गन्ध कहीं नहीं है ।
इस कथा की सभी घटनाएं और पात्र वास्तविक सामाजिक जीवन से लिये गये हैं । चाण्डाल, व्यापारी, दस्यु, डाकू श्रादि अपनी-अपनी व्यक्ति संस्कृति द्वारा कल्पनाजन्य परिस्थितियों के स्थान पर जीवन की अनुकृति का आनन्द देते हैं । प्रत्येक पात्र का चरित्र इस कथा में किसी विशेष सामाजिक अर्थ का प्रतीक हैं और उसका अपना चित्रणात्मक लक्ष्य है । सभी पात्रों का चरित्र सामान्यतः प्रेम, घृणा, द्वेष, ईर्ष्या, संघर्ष, लोभ आदि मनोवृत्तियों का परिचायक हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि पात्र हमारे समाज के बीच के प्राणी हैं, उनसे हमारा किसी न किसी प्रकार का लगाव है ।
नागरिक जीवन के मूल्यों, सामान्य सामाजिक व्यवस्था में व्याप्त मानव प्रवृत्तियों, व्यावसायिक प्रणालियों और अन्ततः नंतिक मूल्यों का प्रत्यन्त रोचक निदर्शन इस कथा का प्रधान उपजीव्य है । अनेक साहसिक और कौतूहल व्यंजक दृश्यों की योजना द्वारा एक विशिष्ट प्रकार के रस का स्पन्दन होता है, जो अपनी विविधता और वर्णन सौन्दर्य में
१ - मिलिया रहवरा - सं०, पृ० ६ । ४६६ ।
२ - - प्रोसहिवलयं ही, पृ० ६ । ५०६ ।
३ - वही, पृ० ६ । ५०६ ।
४ - मारियो नाम चाण्डालो - वही, ६ । ५०८ ।
५ - वही, पृ० ६ । ५०७ ।
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