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२३ । सामरस्य सृष्टि और प्रेषणीयता-- प्राकृत कथाओं में सन्देश को प्रेषणीय बनाने के लिए सामरस्य की सृष्टि की गयी हैं । प्रेषणीयता का संबंध व्यंजना से है । रागों, मनोभावों और विचारों को संक्रामक वृत्ति द्वारा पाठक या श्रोता तक पहुँचाना प्रेषणीयता है । सामरस्य की प्रेषणीयता में तीन तत्त्व गर्भित हैं-
(१) प्रेषक भावों-- स्वस्तिक के चतुर्भुज रूप की मौलिकता ।
( २ ) प्रेषण की स्पष्टता ।
(३) कथाकारों के जीवन की विशुद्धता तथा उनके मनोभावों की सच्चाई ।
प्राकृत के कथाकारों ने जीवन की गहराइयों में प्राप्त अनुभवों और साधारण स्थिति राग-विरागों का प्रेषण किया है ।
२४ । भाग्य और संयोग का नियोजन -- प्राकृत कथाओं में भाग्यवाद पर बड़ा जोर दिया गया है । जो कुछ भी होता है या हो सकता है, वह सब भाग्यानुसार ही होता है । प्राकृतिक घटनाओं या वस्तुओंों की भांति मनुष्य के कर्म भी कार्य-कारण की श्रृंखलता में बंध हैं | कर्म और उसके विपाक का सम्बन्ध प्रात्मा की वै भाविक शक्ति पर निर्भर है। व्यक्ति का अपना अस्तित्व कुछ नहीं, कर्मफल की प्रेरणा ही - - जन्म-जन्मान्तरों का सम्बन्ध हो सब कुछ हैं, जो व्यक्ति के संयोग-वियोगों को संघटित या विघटित करता हूँ । हां, मोक्ष पुरुषार्थ की प्राप्ति के लिए व्यक्ति अपनी गृहस्थाश्रम की ग्रासक्ति को छोड़ भाग्यवाद का अतिरेक करता हूँ ।
२५ । पारामनोवैज्ञानिकशिल्प -- इस स्थापत्य का उपयोग पूर्वजन्म की घटनाएं सुनाकर संसार से विरक्त कराने और संन्यासी या भ्रमण जीवन के हेतु प्रेरित करने के लिए किया जाता है ।
२६ | अलौकिक तत्त्वों की योजना -- प्राकृत कथाओं में कुछ ऐसे तत्वों का भी सन्निवेश किया गया है, जो देवी प्रभावों से आच्छादित हैं । ये पाठक को केवल चमत्कृत हो कर सकते हैं, जीवन शोधन नहीं ।
२७ । मध्य मौलिकता या ग्रवान्तर मौलिकता -- प्राकृत कथाओं के स्थापत्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनका मूल मध्य में रहता है । इसका कारण यह है कि मध्य में रखा हुग्रा धर्मोपदेश या कथा का मर्म आदि और अन्त को भी दीपक के समान उद्भासित करता है ।
२८ । दोश, नगर, ग्राम और व्यक्तियों के नामों द्वारा नादतत्त्व की योजना कथा में नादतत्त्व का सृजन करती है । नादतत्त्वों से सौन्दर्य और संगीत की निष्पत्ति होती. | पाठक के ग्रान्तरिक सौन्दर्य की अभिव्यंजना करने में नादतत्त्व बहुत सहायक होता
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इस प्रकार प्राकृत कथाओं का स्थापत्य बहुत ही संगठित और व्यवस्थित है । यही कारण है कि प्राकृत कथाएं लाठी की मार की तरह सीधे हृदय पर चोट करती हैं । धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की भावात्मक और अलंकृत वाणी में अभिव्यंजना करती हैं । अलंकार और रस की योजना भी इनमें विद्यमान हैं। यहां "घृतं भुक्तं" के समान एक-एक अवयव को भी स्थापत्य कहा गया है ।
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