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________________ सरस्वती की धारा के समान पृथक् रूप से नहीं देखी जा सकती है। विचारों और सिद्धांतों को उदार और सहिष्णु बनाने से आचार व्यवहार की संकीर्णता नष्ट होती है । वास्तव में किसी भी प्रकार की संकीर्णता संस्कृति का अंग है भी नहीं। सौन्दर्य चेतना को संस्कृति का अभिन्न अंग माना जाता है । शरीर से लेकर प्रात्मा तक को सुन्दर बनाने का प्रयास संस्कृति के अन्तर्गत प्रायेगा। प्रत्येक व्यक्ति अपने रहन-सहन, प्राचार-व्यवहार, खान-पान सभी को सुन्दर बनाने का उपक्रम करता है । अपने इन सभी व्यवहारों में सुरुचि लाना चाहता है । यह सुन्दर बनने की प्रवृत्ति ही संस्कृति की ओर ले जाने वाली है । जीवन के प्रत्येक पहल को सुन्दर और पनि बनाना और सभी क्षेत्रों में अपनी दृष्टि को सुरुचिपूर्ण रखना संस्कृति है । हरिभद्र ने व्यक्ति की आत्मा को सुसंस्कृत बनाने के लिये शाश्वत सिद्धांतों और नियमों की विवेचना की है । आत्मा को कर्ममल से रहित कर शुद्ध और चिरन्तन स्वरूप की उपलब्धि का निरूपण किया है । व्यक्ति जब तक संकीर्ण होकर अपने ही स्वार्थ में लीन रहता है, तब तक वह सुसंस्कृत नहीं माना जा सकता। त्याग और इन्द्रिय निग्रह प्रात्मा को सुसंस्कृत करने वाले उपादान है । धर्म आत्मा का संस्कार करता है और धर्म ही व्यक्ति को सुसंस्कृत बनाता है । हरिभद्र ने स्वयं बतलाया है -- जीवो अणाइनिहणो पवाहनो अनाइकम्मसंजुत्तो। पावेण सया दुहियो सुहिनो उण होइ धम्मेण ॥ धम्मो चरित्तधम्मो सुयधम्मानो तो य नियमेण । कसच्छेयतावसुद्धो सो च्चिय कणयं व विन्ने प्रो॥ पाणवहाईयाणं पावट्ठाणाण जो उ पडिसहो। झाणज्झयणाईणं जो य विही एस धम्मकमो॥ -स०पृ० ८७८६-७६० । इससे स्पष्ट है कि अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूप धर्म के साथ ध्यान, अध्ययन रूप धर्म प्रात्मा का संस्कार करता है । व्यक्ति की विकृत अवस्थानों का निराकरण या परिमार्जन कर सुसंस्कृत बनाता है । इसमें सन्देह नहीं कि हरिभद्र ने मध्यकालीन पतित और दलित समाज में सांस्कृतिक जागरण का शंखनाद किया है। इस प्रकरण में संस्कृति से प्रभावित सभ्यता के उपकरणों का विश्लेषण किया गया है । इसके प्रमुख तथ्य निम्न है :-- १--हरिभद्र की भौगोलिक सामग्नी का चयन और वर्गीकरण । २--राजन तिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक विशेषताएं। ३--शिक्षा, साहित्य और कला का विश्लेषण । दशम प्रकरण उपसंहार है । इसमें हरिभद्र की विशेषताओं का सिंहावलोकन करते हए उनको उपलब्धियों का निर्देश किया है । नेमिचन्द्र शास्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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