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यह कथा बहुत ही रोचक है और इसका उद्देश्य सिद्धचक्र पूजा का माहात्म्य प्रदर्शित करना है। कथावस्तु निम्न प्रकार है:
उज्जयिनी नगरी में पृथ्वीपाल नाम का राजा था। इसको दो पत्नियां थीं। सौभाग्य सुन्दरी और रूपसुन्दरी। सौभाग्य सुन्दरी के गर्भ से सुरसुन्दरी और रूपसुन्दरी के गर्भ से मदनसुन्दरी का जन्म हुआ। सुरसुन्दरी ने मिथ्यादृष्टि के पास शिक्षा प्राप्त की और वह शिक्षा, व्याकरण, नाटक, गीत-वाद्य आदि सभी कलाओं में निपुण हो गयी। मदनसुन्दरी न सम्यग्दष्टि क पास साततत्त्व, नवपदार्थ एव कमसिद्धान्त आदि की शिक्षा प्राप्त की। राजा ने दोनों की परीक्षा ली। वह सुरसुन्दरी के लौकिक ज्ञान से बहुत प्रभावित हुधा और उसका विवाह कुरुजांगल देश के अन्तर्गत शंखपुरी नगरी के राजा दमितारी के पुत्र अरिदमन के साथ कर दिया। कर्मसिद्धान्त की पक्षपातिनी होने के कारण राजा मदनसुन्दरी से बहुत असन्तुष्ट हुआ और उसका विवाह एक उम्बर राजा से कर दिया, यह उम्बर कष्ठ व्याधि से पीडित सात-सौ कोढियों के बीच रहता था। उम्बर विशेष कुष्ठ रोग से पीड़ित होने से ही वह उम्बर राजा कहलाता था।
विवाह के पश्चात् मदन सुन्दरी उम्बर राजा के साथ ऋषभदेव भगवान् के चैत्यालय में दर्शन करने गयी और वहां से मुनिचन्द्र नामक गुरु से सिद्धचक्र विधान करने का उपदेश लेकर आयी। उसने विधिपूर्वक सिद्धचक्र विधान सम्पन्न किया। सिद्धयन्त्र के गन्धोदक के छींटे लगते ही उम्बर राजा का कुष्ठरोग दूर हो गया। उसका शरीर कंचन जैसा शुद्ध निकल पाया। अन्य सात-सौ कोढ़ी भी स्वस्थ हो गये। विधान समाप्त होते ही मदन सुन्दरी अपने पति श्रीपाल सहित मन्दिर से बाहर निकली कि उन दम्पति को सड़क पर एक अर्धवृद्धा नारी मिली। कुमार श्रीपाल उसे देखकर आश्चर्य चकित हुमा और उसका चरण वन्दन कर कहने लगा--मां पाप मुझे छोड़कर कहां चली गयी थी? वह बोली--वत्स, मैं तुम्हारे रोग के प्रतिकार के लिए कौशाम्बी में एक वैद्य के यहां गयी थी, पर वह वैद्य तीर्थयात्रा के लिए बाहर चला गया है। मैंने वहां एक मुनिराज से तुम्हारे रोग के सम्बन्ध में पूछा तो उन्होंने कहा कि पत्नी के सहयोग से तुम्हारे पुत्र का रोग दूर हो गया है। मैं मुनिराज की बात का विश्वास कर यहां आयी हूं। पश्चात् यह समाचार रूपसुन्दरी और पृथ्वीपाल को मिला। इन्होंने कुमार की माता से उसका परिचय पूछा। वह कहने लगी :--
अंगदेश में चम्पा नाम की नगरी है। इसमें पराक्रमी सिंहरथ नाम का राजा राज्य करता था। उसकी कमलप्रभा नाम की पत्नी थी, जो कुंकुणदेश के स्वामी की छोटी बहन थी। इस राजा को बहुत दिनों के बाद पुत्र उत्पन्न हुअा, अतः राजा ने अपनी अनाथ लक्ष्मी का पालन करने वाला होने से पुत्र का नाम श्रीपाल रखा । श्रीपाल दो वर्ष का था, तभी शूलरोग से राजा सिंहरथ की मृत्यु हो गयी। मतिसागर मन्त्री ने बालक श्रीपाल को राज्य का अधिकारी बनाया और स्वयं राज्य का संचालन करने लगा। इधर श्रीपाल के चाचा अजितसेन ने राज्य हड़पने के लिए कुमार श्रीपाल और मतिसागर मन्त्री को मार डालने का षड्यन्त्र किया। जब मतिसागर मन्त्री को यह समाचार ज्ञात हमा तो उसने रानी कमलप्रभा को सलाह दी कि वह राजकुमार को लेकर कहीं चली जाय। कुमार जीवित रहेगा तो राज्य की प्राप्ति उसे हो ही जायगी। अतः रानी मध्य रात्रि में कुमार को लेकर चल पड़ी। जंगल में सात सौ कुष्ठ रोगियों से उसकी भेंट हुई। उन्होंने रानी को अपनी बहन बना लिया। कुमार कोढ़ियों के सम्पर्क में रहने से उम्बर नामक कुष्ठरोग से आक्रान्त हुप्रा। महारानी कमलप्रभा उज्जयिनी में आकर अपने प्राभूषण बेचकर कुमार का पालन-पोषण करने लगी। कुमार सात-सौ कोढ़ियों का अधिपति होकर उम्बर राजा के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इसी उम्बर राजा के साथ मदनसुन्दरी का विवाह हुआ।
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