SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४९ ) [ईश्वर की प्रवृत्ति में अनेकान्तता] [शंकर स्वामी स्वनामधन्य स्वामि शंकराचार्य ने सांख्यों के प्रधान कारणवाद का खण्डन करते हुए ईश्वर की प्रवृत्ति में अनेकान्तवाद का ही अनुसरण किया है । आप लिखते हैं सांख्यानां व्रयोगुणाः साम्येनावतिष्टमानाः प्रधानम् नितु तव्यतिरेकेण प्रधानस्य प्रवर्तकं निवर्तकं वा किंचिद्वाह्यमपेक्ष्यमवस्थिमस्ति । पुरुषस्तूदासीनो न प्रवर्तको न निवर्तक इत्यतोऽनपेक्षं प्रधानम् | अनपेक्षत्वाच्च कदाचित्प्रधानं महदाद्याकारेण परिणमते कदाचिच्च न परिणमते इत्येतदयुक्तम् । ईश्वरस्य तु सर्वज्ञत्वात् सर्व शक्तिमत्वात् महामायत्वाच्च प्रवृत्य प्रवृतीन विरुध्यते ॥४॥ (ब्रह्म सू० शां० भा० अ० २ पा० २ सु० ४) भावार्थ-सांख्यमत में गुणत्रय की साम्यावस्था को प्रधान कहा है। इन गुणों के अतिरिक्त प्रधान का प्रवर्तक अथवा निवर्तक दूसरा कोई नहीं । पुरुष सर्वथा उदासीन है वह न किसी का प्रवर्तक है और न निवर्त्तक । तब तो प्रधान निरपेक्ष ठहरा, निरपेक्ष होने से उसका महदादि आकार से कदाचित ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002141
Book TitleDarshan aur Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy