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( २० ) आकृत्ति)-ये दोनों ही घट रूप वस्तु के स्वरूप हैं । अब यहां पर विचार यह करना है कि घट के दो स्वरूपों में से उसका विनाशी स्वरूप कौन ? और अविनाशी स्वरूप कौन ? यह तो प्रत्यक्षतया दृष्टिगोचर हो रहा है कि घट रूप वस्तु का जो, लम्बी सी गर्दन बीच से पोला गोलमोल सा जो आकार विशेष देखने में आता है वह तो अवश्य नाशवान है, वह टूट जाता है, उसका नियत आकार बदल जाता है और उसका रूप नष्ट हो जाता। परन्तु उसका दूसरा स्वरूप जो मृत्तिका है वह ध्रुव, नित्य एवं अविनाशी है । उसका मूल रूप से कभी विध्वंस नहीं होता। अनेकानेक आकार विशेषों को धारण करता हुआ भी वह मृत्तिका रूप द्रव्य-ज्योंका त्यों ही बना रहता है । लाखों परिवर्तन होने पर भी वह कायम का कायम ही रहता है । इस सर्वानुभव सिद्ध उदाहरण से यह सिद्ध हुआ कि घट रूप पदार्थ के दो स्वरूप हैं एक ध्रुव-अविनाशी, और दूसरा विनाशी इन दो में से किसी एक का भी तिरस्कार नहीं हो सकता । अतः घट पदार्थ को अपने ध्रुव-अविनाशी स्वरूप की अपेक्षा नित्य और विनाशी स्वरूप की अपेक्षा से अनित्य कहेंगे इसी आशय से जैन ग्रन्थों में स्थान २ पर लिखा है-“द्रव्यात्मनास्थिति रेव सर्वस्य वस्तुनः पर्यायात्मना सर्व वस्तूत्पद्यते विपद्यते वा इति"
-स्याद्वाद मंजरी पृष्ठ १५८ ।
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