________________
[ १४ ]
अजनग्रन्थ
ग्रान्थकार
निबन्ध पृष्टांक
(१४) मीमांसाश्लोक वार्तिक कुमारिल भट्ट १६-५४-५५-५७
५८-५९-६० - १७७
१६-५६-५७-५८
पार्थसार मिश्र
(१५) न्याय रत्नाकर (श्लोक वार्तिक व्याख्या) (१६) पातंजल योगदर्शन पतंजलि ऋषि ३९
(१७) व्यास भाष्य टिप्पण वालरामजी उदासीन २९-३१-३३
३५-३७-४७
(१८) राज मार्तण्ड भोजदेव (१९) ब्रह्मसूत्र शांकरभाष्य स्वामी शंकराचार्य ४९-५१-५२-१२३
-१२५-१६२-१६५
(२०) न्यायनिर्णय आनंद गिरि
(शांकर भाष्य टीका)
(२१) भामति
(शां० भा० टी०)
(२२) रत्नप्रभा
वाचस्पति मिश्र
Jain Education International
गोविन्दानन्द
४१
""
५१-१६०
१५९-१६३
(शां० भा० टी०) ।
५२
(२३) सांख्य तत्व कौमुदी वाचस्पति मिश्र (२४) विद्वत्तोषिणी साधुप्रवर बालरामजी ५३
(सां० तत्वकौ० व्या० )
1⁄2 (२५) तै०
५२
० उ० शांकरभाष्य स्वा० शंकराचार्य ५२ - १२५ (२६) वृ० उ० शां० भा० (२७) वैशेषिक दर्शन ( २८ ) प्रशस्त पाद भाष्य
७९-८२
१६०-१६४
कणाद ऋषि
प्रशस्तपाद मुनि ७९
६०
For Private & Personal Use Only
१६७
www.jainelibrary.org