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अर्थात् - स्वरूप और पररूप की अपेक्षा वस्तु सत् और असत् उभय रूप है । सर्वहि वस्तु स्वरूपतः सद्रूपं पररूपतश्चा सद्रूपम् यथा घटो घट रूपेण सत् पट रूपेणासत् सभी वस्तुएं स्वरूप से सत् और पररूप से असत् हैं जैसे घट घटरूप से सत है और पट रूप से असत है ( टीकाकार ) तथा वैशेषिक दर्शन में भी अभाव निरूपण में इसी प्रकार का उल्लेख है । उसका जिकर पीछे आ चुका है ।
भास्कराचार्य ने पूर्व पक्ष में इस बात का कुछ जिकर किया है परन्तु इसका प्रतिवाद करते हुए उन्होंने उसी शैली का अनुकरण किया जो कि स्वामी शंकराचार्य की है। वे कहते हैं कि "घट रूप से घट सत् है और पट रूप से असत् इस प्रकार स्वरूप पर रूप की अपेक्षा से वस्तु सद् असद् रूप भी हो, सकती है” यह कथन भी ठीक नहीं क्योंकि स्वरूपादि के विषय में भी सप्तभंगी नय का प्रवेश है, अर्थात् स्वरूप भी कथंचित है और कथंचित् नहीं इत्यादि रूप से अनिश्चित ही रहेगा x
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X ननु पट रूपेण घटोनास्ति स्वेन रूपेणास्तीति को विरोधः । उच्यते स्वरूपेपि सप्तभंगी नयस्यावशत् । स्वरूपमस्तीत्य पिस्यान्नास्तीत्यपि तत्रा नव्यवसानमेवस्यात् ।
( भास्करीय ब्रह्म सूत्र भाष्य २ । २ । ३३ ) जैन दर्शन अनेकान्तवाद को अनेकान्त रूप से स्वीकार करता है "अनेकान्तस्याप्यनेकान्तानु विद्वैकान्त गर्भत्वात् " इसलिये भट्ट भास्कर जिस विषय में उस पर दोष का उद्भावन कर रहे हैं वह सुसंगत नहीं है । इस बात की चर्चा हम पीछे कर आये हैं ।
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