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( १७६ ) अन्यथा वस्तु के अभाव का-घटादि रूप वस्तु के अभाव का प्रसंग होगा अर्थात् जिस प्रकार स्वद्रव्य क्षेत्रकाल भाव की अपेक्षा वस्तु सत् है उसी प्रकार यदि पर द्रव्य क्षेत्रकाल भाव रूप से भी वस्तु सत् ही हो तो घटादि वस्तु ही नहीं ठहर सकते, क्योंकि वह अपने स्वरूप की भांति अपने से भिन्न पर द्रव्यादि रूप से भी स्थित हैं । एवं पर द्रव्यादि रूप से घटादि पदार्थ जैसे असत् हैं वैसे स्व द्रव्यादि रूप से भी असत् हो तो घटादि पदार्थ गधे के सींग की माफिक तुच्छ ही ठहरेंगे। अतः सापेक्षतया वस्तु, सदसद् रूप ही स्वीकार करनी चाहिये "नहि स्वपर सत्ता भावा भाव रूपतां विहाय वस्तुनो विशिष्टतैव सम्भवति" वस्तु में स्वसत्ता का भाव और पर सत्ता का अभाव यदि न हो तो उसका-वस्तु का-विशिष्ट स्वरूप ही सम्भव नहीं हो सकता।
( हरिभद्र सरिः) (५) जैसे स्वरूपादि की अपेक्षा वस्तु में सत्व है उसी प्रकार पर रूपादि से भो उसमें यदि सत्व ही मानें तो एक ही घटादि वस्तु सर्वत्र प्राप्त हो जाय अर्थात् सभी वस्तुएं एक वस्तु रूप ही बन जॉय (चंद्रप्रभ सूरिः)
(६) कोई भी वस्तु सर्वथा भाव और अभाव रूप नहीं किंतु स्वरूप की अपेक्षा भाव और पर रूप की अपेक्षा अभाव रूप
५-यथा स्वद्रव्याद्यपेक्षया सर्व तथा पर द्रव्याद्यपेक्षयापि सत्वं, तथा तदेव घटादि वस्तु सर्वत्र प्राप्नोति, ततश्च सर्वपदार्थाद्वैतापत्ति लक्षणं दूषणमापद्येत।
(प्रमेयरत्न कोष पृ० १५)
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