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( १५२ ) प्रतीत नहीं होती कि उक्त लेख किस हद तक अनेकान्तवाद की प्रामाणिकता का समर्थक है। ईश्वर में अपेक्षाभेद से कर्तृत्व और अकर्तृत्व ये दोनों विरुद्ध धर्म किस प्रकार रह सकते हैं इस बात का सप्रमाण निरूपण करके स्वर्गवासी उक्त पंडित जी ने न केवल अपेक्षावाद की उपयोगिता को ही साबित किया, किन्तु सनातन धर्म के इस महत्वपूर्ण मौलिक सिद्धान्त के विषय में फैली हुई साधारण जनता की अज्ञानता को भी बहुत अंश तक दूर कर दिया है । इसी प्रकार के अनेकानेक वाक्य,दर्शनों के आधार भूत श्रुतिस्मृति और पुराणादि में उपलब्ध होते हैं जिनसे कि अपेक्षावाद की उपयोगिता भली भांति विदित है।
[परिशिष्ट प्रकरण]
(ख)-विभाग।
[अनेकान्तवाद के साथ अन्याय ]
(१) एक भारतीय साक्षर विद्वान् का कथन है कि जिस प्रकार जैनों के अनेकान्तवाद अथवा सप्त भंगी नय के साथ अन्याय हो रहा है उसी प्रकार वेदान्त के अनिर्वचनीय वाद के
(१) देखो "हिन्द तत्व ज्ञाननो इतिहास" ग्रन्थकर्ता-श्रीयुत नर्मदाशंकर देवशंकर मेहता बी. ए. मु० अहमदाबाद ।
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