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(: १२८) बौद्धों के परमतत्व और वेदान्तियों के अनिर्वचनीय शब्द की , जो व्याख्या अथवा स्वरूप निर्दिष्ठ हुआ है उसका सूक्ष्म दृष्टि से निरीक्षण करने पर उनमें अनेकान्तवाद का ही सम्पूर्णतया दर्शन होता है अतः अनिर्वचनीय शब्द अनेकान्तवाद का ही समानार्थ वाची शब्द है ऐसा हमें प्रतीत होता है।
[एक भ्रम की निवृत्ति ]
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.... स्याद्वाद के विषय में बहुत से विद्वानों की यह धारणा है
कि एक वस्तु में विरुद्ध धर्मों की सत्ता को प्रतिपादन करने का नाम स्याद्वाद अथवा अनेकान्तवाद है। परन्तु यह उनका भ्रम है इसी भ्रम के कारण उन्होंने स्याद्वाद के ऊपर बड़े तीव्र प्रहार किये हैं वास्तव में नाना विरुद्ध धर्मों का एक स्थान में विधान या प्रतिपादन करने का नाम स्याद्वाद नहीं किंतु, वस्तु में अपेक्षा भेद से उनके-विरोधि धर्मों के अविरोध को साबित करने वाली पद्धिति का नाम स्याद्वाद वा अनेकान्तवाद है ऐसाही जैन विद्वानों का मानना है * इस लिये अपेक्षाकृत दृष्टिभेद से वस्तु में नित्यानित्यत्व आदि अनेक विरोधि धर्म अपनी सापेक्ष सत्ता को
* नोकत्र नाना विरुद्ध धर्म प्रतिपादक: स्याद्वादः किन्त्वपेक्षाभेदेन तदविरोध घोतक स्यात् पद समभिव्याहृत वाक्य विशेष इति ।
(उपाध्याययशो विजय । न्याय खंडखाद्य श्लो० ४२ की व्याख्या)
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