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ब्रह्म सभी विरोधी धर्मों का आश्रय है - वह कूटस्थ भी है और चल भी एक भी है और अनेक भी इत्यादि ।
इस लेख से जो कुछ प्रतीत होता है वह स्फुट है । ब्रह्म एक भी है और अनेक भी अचल भी है और चल भो इत्यादि रूप से जो विरुद्ध गुणों की उसमें स्थिति बतलाई जाती है वह अपेक्षा कृत भेद के अनुसार ही युक्तियुक्त समझी जाती है अन्यथा नहीं इसलिये इस प्रकार के वाक्य भी अपेक्षावाद अनेकान्तवाद के ही समर्थक हैं ऐसा हमारा विचार है ।
[ पञ्चदशी ]
शांकर मत के अनुयायी विद्यारण्य स्वामी ने वेदान्त विषय पर पञ्चदशी नाम का एक सुवाच्य प्रकरण ग्रन्थ लिखा है । उक्त ग्रन्थ में भी रूपान्तर से अनेकान्तवाद का उल्लेख देखा जाता है । माया का निरूपण करते हुए विद्यारण्य स्वामी स्पष्ट रूप से अपेक्षावाद का आश्रय लेते हुए प्रतीत होते हैं । अपेक्षावाद, अनेकान्तवाद का ही पर्यायवाची शब्द है यह बात कई दफ़ा कही गई है।
पञ्चदशी के चित्रदीप प्रकरण में आप लिखते हैं
(१) तुच्छा निर्वचनीया व वास्तव चेत्यसौ त्रिधा । ज्ञेया मायात्रिभिबांधेः श्रौत यौक्तिक लौकिकैः ॥१३०॥ (२) अस्य सत्वमसत्वं च जगतो दर्शयत्यसौ । प्रसारणाच्च संकोचाद्यथा चित्रपटस्तथा ॥१३१॥
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