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देश की प्राय: सभी अच्छी २ धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं को आपने प्रचुर धन दिया। देश की शिक्षा और शिल्प विद्या की तरफ भी आपका कम लक्ष्य नहीं था । अभी कुछ दिन पहले आपने चितरंजनदास सेवा सदन को दस हजार रुपये दान में दिये । इस के सिवाय काशी के हिन्दूविश्वविद्यालय, योधपुर के "बालिका विद्यालय" जियागंज के अस्पताल और जयपुर आदि अन्यान्य स्थानों की विविध संस्थाओं को आपने लक्षाधिक रुपये प्रदान किये। समयोपयोगी धाम्मिक साहित्य प्रचार में भी आपका बड़ा उत्साह था; कई पुस्तकों के प्रकाशन में आपने आर्थिक सहायता दी है और पं० सुखलाल जी द्वारा बिलकुल ही नये ढंग से लिखा हुआ देवसि राई व पंचप्रतिक्रमण की पुस्तक को तैयार कराने व प्रकाश कराने का सम्पूर्ण व्यय भार आप ही ने वहन किया था । वाणिज्य व्यवसाय में भी आपका स्थान असाधारण था। ईस्वी सन् १९०९ में जब, देशी जूट के व्यवसाइयों ने "रायल एक्सचेंज' से अपने को अलग करके "जूट वेलर्स एसोसियेशन" नाम की एक पृथक् व्यापारिक संस्था की स्थापना की तब व्यापारी जनता की तरफ से आप ही प्रथम उसके सभापति निर्वाचित हुए थे। इसका कारण, आपकी व्यवहार पटुता और सच्ची प्रामाणिकता थी। आप प्रकृति के जितने कोमल उतने गम्भीर भी थे। इस कदर व्यवहार दक्ष
और नीति निपुण होने पर भी आप में उसका गर्व नहीं था सामान्य बुद्धि के मनुष्य से भी किसी कार्य में प्राप्त हुए परामर्श पर आप खूब विचार करते थे। किसी के विचार को यूंही ठुकरा देना आपकी प्रकृति के प्रतिकूल था ।
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