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( ९४ ) नहीं यह ] उसको वृहस्पति भी नहीं हटा सकता । तथा वृक्ष में, कपि संयोग और तदभाव-कपि संयोगाभाव इस प्रकार, भाव और अभाव को अवच्छेदक भेद से एक स्थान में मान कर दीधितिकार ने भी अनेकान्तवाद के समर्थन में कुछ कमी रखी हो ऐसा हमें प्रतीत नहीं होता।
[ वेदान्तदर्शन] - वेदान्त दर्शन में भी अमेकान्तवाद की चर्चा पाई जाती है कहीं पर तो स्पष्ट रूप से और कहीं अस्पष्ट रूप से, मगर है अवश्य, ऐसा हमारा विश्वास है।
( भास्कराचार्य का ब्रह्म सूत्र भाष्य ) महर्षि व्यास देव प्रणीत ब्रह्म सूत्रों पर अनेकानेक भाष्य और टीकायें लिखी गई हैं उनमें से महामति भास्कराचार्य विरचित भाष्य भी एक है उसमें "तत्तसमन्वयात (१-१-४) सूत्र के भाष्य में लिखा है “यदप्युक्तं भेदा भेदयोर्विरोध इति । तदभिधीयते अनिरूपित प्रमाण प्रमेय तत्वस्येदंचोद्यम् ।
एकस्यैकत्वमस्तीति प्रमाणादेवगम्यते । नानात्वं तस्य तत्पूर्वकस्माद् भेदोपि नेष्यते ॥ पत्प्रमाणैः परिच्छिन्न मविरुद्धहितत्तथा । वस्तु जालं गवाश्चादि भिन्नाभिन्न प्रतीयते ।।
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