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भावार्थ-कर्म से जो फल उत्पन्न होता है वह उत्पत्ति से पूर्व सत् है किंवा असत् ? इस प्रश्न पर प्रथम पूर्व पक्ष रूप सूत्र का उल्लेख करते हैं " नासन्नसन्न " इत्यादि अर्थात् उत्पत्ति से पूर्व फल कार्य न तो असत् है और न सत् नाहीं सत् असत् । “यदि उत्पत्ति से पूर्व कार्य को सर्वथा असत् रूप ही माना जाय तब तो तंतुओं से पट मृत्तिका से घट और तिलों से ही तेल आदि उत्पन्न होने का जो नियम देखा जाता है उसकी उपपत्ति नहीं हो सकतीं । जिस प्रकार असत् रूप पट लन्तुओं से, असत् रूप घट मृत्तिका से और असत् रूप तेल, तिलों से उत्पन्न होता है उसी प्रकार तन्तुओं से घट, मृत्तिका से पट और बालु-ता-से तेल भी उत्पन्न होना चाहिये । क्योंकि जैसे तन्तुओं में पट, उत्पत्ति से पूर्व में सर्वथा नहीं है ऐसे मृत्तिका में भी नहीं है तथा जिस प्रकार तिलों में प्रथम, तेल का सर्वथा अभाव है ऐसे वालु आदि में भी उसका असत्व है फिर क्या कारण है जो कि तंतुओं से ही पट, मृत्तिका से ही घट और तिलों से ही तेल उत्पन्न होता है असत्व तो सब जगह पर समान
है । और लोक में भी देखा जाता है कि जिसको तेल की आवश्यकता होती है वह तिलों को ही खरीदता है तथा जिसको घट बनाना आवश्यक होता है वह कुम्हार मृत्तिका और कपड़ा बनाने का अभिलाषी तंतुवाय- जुलाहा सूत्र को ही ढूंढ़ता है यदि उत्पति से पूर्व कार्य, सर्वथा असत् हो तब तो इस प्रकार का नियम नहीं रहना चाहिये इससे मालूम होता है कि उत्पत्ति से पूर्व कार्य सर्वथा असत् नहीं । तथा सत् भी नहीं कह
* यह सब, मूल में दिये गये "उपादान नियात् की व्याख्या है।
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