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' दर्शन और अनेकान्तवाद' नामक पुस्तक पढ़कर यथार्थ में मुझे अत्यानन्द प्राप्त हुआ। ऐसी उपयोगी पुस्तक लिखने के लिये मैं लेखक महोदय को बधाई देता हूँ । लेखक महोदय ने इस बात को पूर्ण योग्यता के साथ दर्शाया है कि भिन्न भिन्न दर्शनों ने अपने दार्शनिक सिद्धान्तों में अनेकान्तवाद का समन्वय किस प्रकार किया है । मुझे विश्वास है कि भारतीय दर्शन शास्त्रों के अभ्यासी इस पुस्तक को पढ़कर इससे अत्यन्त लाभ उठावेंगे।
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बी० भट्टाचार्य प्रिंसिपल विद्यावन [शान्ति निकेतन ]
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