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एक ही समय में जानता तथा परिणत होता है, वह समय है । " आचार्य जिनसेन ने समयसार तात्पर्य वृत्ति में लिखा है- 'सम्यग् अर्थात् संशय आदि रहित ज्ञान जिसका होता है, वह जीव समय है ।" पं० जयचन्द छाबड़ा ने भाषा वचनिका में लिखा है कि 'सम' उपसर्ग है, जिसका अर्थ 'एक साथ' हैं और 'अय गतौ' धातु है, जिसका अर्थ गमन और ज्ञान भी है, इसलिए एक साथ ही जानना और परिणमन करना - यह दोनों क्रियाएँ जिसमें हों, वह समय है । यह जीव नामक पदार्थ एक ही समय में परिणमन भी करता है और जानता भी है, इसलिए वह समय है । "
१ – समयसार, आत्मख्याति टीका, गा० २ | २ - वही, तात्पर्यवृत्ति, गा० १५१ ।
३ - समयसार, गा० २ ।
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